गुरु से आशीर्वाद का महत्त्व
बिल्कुल सही बात कहा है। गुरु के आशीर्वाद से कुछ नहीं होता है। महाराज, जब गुरु के आशीर्वाद से कुछ नहीं होता तो लोग लेते क्यों और आप देते क्यों यह एक प्रश्न है। मैं आपसे कहना चाहता हूँ गुरु के आशीर्वाद से वैसे कुछ नहीं होता, पर देखा जाए तो गुरु के आशीर्वाद से सब कुछ होता है। क्या होता है मैं आपको बताऊँ।
गुरु क्या देते हैं? गुरु अगर देखा जाए तो प्रत्यक्ष रूप से आपको देने की कोई भी चीज गुरु के पास नहीं है। और दिगंबर गुरु के पास तो कुछ भी नहीं है पिच्छी और कमंडल है। भौतिक रूप से वह कुछ भी नहीं दे सकते। और गुरु के पास भी है यह ताकत नहीं है कि तुम्हारे पाप को पुण्य में परिवर्तित कर दें। लेकिन हाँ, गुरु का आशीर्वाद तुम्हारी सोच को बदलता है। गुरु आशीर्वाद से व्यक्ति की सोच बदलती है, आत्मविश्वास जगता है, विशुद्धि बढ़ती है। बदले हुवे सोच, जागृत आत्मविश्वास और बढ़ी हुवी विशुद्धि का नतीजा यह होता है कि भीतर बैठे अशुभ कर्म शुभ में परिवर्तित हो जाते हैं। और कहते आशीर्वाद से चमत्कार हो गया। आशीर्वाद कुछ नहीं करता। आशीर्वाद केवल सपोर्ट देता है। उसकी बैकिंग होती है और उस बैकिंग से व्यक्ति जब आगे बढ़ता है तो उसके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आता है। इसलिए अगर कहो इसी भरोसे में रहो कि मुझे आशीर्वाद मिल गया मेरा सब काम हो जाएगा तो शायद कभी घाटे में रहो। लेकिन आशीर्वाद पाकर के अपने आत्मविश्वास को जगा लो तो जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आएगा।
एक बार ऐसा हुआ। एक राजा जिसने अचानक हुए परचक्र के आक्रमण से अपने आप को संभाल नहीं सका। नतीजा ये हुआ उसका राज्य खो गया। उसके पास बहुत थोड़ी सी सेना की टुकड़ी बची। और वह छिपता छिपाता अपने जीवन के दिन बिता रहा था, आपने आप को बचा रहा था। संयोगतः उसे एक सिद्ध पुरुष का सानिध्य मिल गया, वह संत थे। उसने जा कर के उनके चरणों में अपनी व्यथा की कि मेरा सारा राज्य वैभव छिन गया, आप बताएं अब मेरे पास कुछ नहीं बचा। मेरा प्रतिपक्षी शत्रु राजा अपार वैभव का धनी है। मेरा शत्रु राजा अपार वैभव का धनी है और क्या मैं अपने खोए हुवे साम्राज्य को फिर से पा सकूँगा? आप आशीर्वाद दें ताकी मैं अपने साम्राज्य को पा लूँ। संत ने कहा ठीक, तुम घबड़ाओ मत। भले ही तुम्हारे पास सेना थोडीसी है लेकिन थोड़ी सी सेना के बल पर भी बहुत बड़ा काम और लाभ हो सकता है। इसलिए एक काम करो मेरे पास एक जादुई यह सिक्का है और इस सिक्के को मैं उछालता हूँ। तुम हैड़ या टेल बोल देना। और जैसे तुम् हैड या टेल बोलोगे जो निकल गया तो तुम समझ लेना इस सिक्के का फैसला आज तक कभी गलत नहीं हुआ। संत ने सिक्का उछाला। राजा ने हेड कहा, सिक्का नीचे गिरा, हैड दिखा। बोलै जाओ मेरा आशीर्वाद है तुम्हें कोई नहीं हरा सकता। तुम बहुत सहजता से जीत जाओगे। संत से प्रेरणा पाकर आत्मविश्वास से लबरेज होकर वह अपनी सैन्य संगठन को मजबूत किया और फिर हमला करके अपने खोए हुए साम्राज्य को पा लिया। जिस दिन उसने आपने खोए हुए साम्राज्य को पाया, उसी दिन वह फिर उस संत के चरणोंमे अपनी ओर से कृतज्ञता प्रकट करने के लिए निकल गया। और कहा गुरुदेव, आपकी कृपा से, आपकी कृपा से आपके आशीर्वाद से मेरा खोया हुआ राज्य मुझे प्राप्त हो गया। मैं किन शब्दों में आप के प्रति आभार प्रकट करूँ? मैं तो कहता हूँ यह राज्य मेरा नहीं आपका, आप ही संभालो, आप ने हीं दिया। गुरु ने कहा मैं इसमें कुछ नहीं किया। बोले आप के सिक्के ने हीं तो हमें जीत दिलाई है। यदि आप के सिक्के में यह करामात नहीं होती, यह करिश्मा नहीं होता तो मैं कभी नहीं जीत पाता। संत ने कहा नहीं यह तुम्हारे पुरुषार्थ का प्रतिफलन है। मैं इसमें कुछ नहीं कऱ सकता। बोले, नहीं गुरुदेव मान नहीं सकता। संत बोले अच्छा हाट निकालो। हात बढ़ाया तो संत ने अपने झोले में हाथ डाला है उस सिक्के को निकाला और उस सिक्के को वापस उसके हाथ में रखा। देखा, बोले यही सिक्के का तो प्रताप है। बोले इस सिक्के को पलट कर तो देखो। जब सिक्के को पलट कर देखा तो दोनों तरफ हेड था। दोनों तरफ हैड, बोले यह कैसे जादू? मैंने कुछ नहीं किया। मैंने तुम्हारे आत्मविश्वास को जगाया और तुम्हारे आत्मविश्वास ने तुम्हें युद्ध जीताया।
बस! संत तुम्हें ऐसा आशीर्वाद देते हैं जिससे तुम्हारा आत्मविश्वास जगता है। और संतों का आशीर्वाद पाकर जिसका आत्म विश्वास जग जाता है वह संसार का यह विषम युद्ध जीत जाता है और अपने आत्म साम्राज्य को प्राप्त कर लेता है।
इसीलिए यह जो कहा जाता है कि पुण्य पाप हमारे जीवन के निर्धारक है और उसमें अपना ही कर्म हमारे लिए कारण है। निश्चय से देखा जाए तो कहते है – आत्मा ही खलु आत्मनो गुरु। आत्मा ही आत्मा का गुरु है। लेकिन फिर भी इन सब के बाद भी गुरु का संपर्क सानिध्य वह प्रेरणा बनती है और उस प्रेरणा के बल पर हमारे जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आता है।
औरों में वह बदलाव आया हो या ना आया हो, पर आज मैं जो भी हूँ गुरु के आशीर्वाद से ही हूँ। यदि गुरु ने अपना आशीर्वाद देकर मुझे अपना हस्तावलम्बन नहीं दिया होता तो इस कठिन मार्ग में चलने का मेरे अंदर साहस नहीं जगा होता। मेरा संकल्प प्रकट नहीं हुआ होता और मैं इस मार्ग पर आगे बढ़ने का निर्णय नहीं ले पाता। गुरु ने कहा “चिंता मत करो, मेरा आशीर्वाद है”। बस मेरे मन में एक बात बैठ गयी मेरे सिर पर गुरू का हाथ, अब मुझे कुछ नहीं होगा और मेरा मार्ग बढ़ता गया, और मुझे मार्ग मिलता गया। आप सबसे भी मैं कहता हूँ जीवन में किसी न किसी एक सदगुरु का हाथ अपने माथे पर जरूर रखवाओ। वो प्रेरणा तुम्हें देगी, वह तुम्हें दिशा देगी जिसके बल पर अपने जीवन को आगे बढ़ा सकोगे। सदगुरु का हाथ जिसके सिर पर आता है वह संसार में कभी अनाथ नहीं हो सकता। और मैं कहता हूँ जिसके सिर पर सतगुरु का हाथ नहीं, ध्यान से सुनना जिसके सर पर सदगुरु का हाथ नहीं, उसके पास भले सारा संसार हो फिर भी परमार्थ के क्षेत्र में वह अनाथ है, अनाथ है। तो अपनी अनाथता को दूर करना चाहते हो, तो गुरु चरणों से अपना नाता जोड़ो जो तुम्हारे जीवन का पथ प्रशस्त करेंगे।
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