सेवायतन, गुणायतन एवं सिद्धायतन

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शंका

धार्मिक आयोजन और अनुष्ठान होने के बाद भी समाज में परिवर्तन क्यों नहीं दिखता?

समाधान

पहली बात तो यह मेरा कोई प्रोजेक्ट नहीं है; मेरा एक ही प्रोजेक्ट है और वो है मेरा रत्नत्रय। रहा सवाल सम्मेद शिखर के विकास का, निश्चित मैं जब शिखर जी आया, तो यहाँ आने से पहले मेरे मन में सम्मेद शिखर की एक अलग छवि थी| मैं इस धारणा के साथ आ रहा था, बचपन में मैंने शिखर जी को देखा था और लगभग 22 वर्ष के अंतराल के बाद में इधर आ रहा था तो मेरे मन में तलहटी से शिखर तक एक कल्पना उभरती थी कि एक ऐसा क्षेत्र होगा जहाँ का कण कण अपनी ओर आकर्षित करता होगा, जहाँ प्रकृति की रम्य छठा बरसती होगी और जहाँ सब तरह का एक अलौकिक आकर्षण होगा। 

लेकिन जब मैं यहाँ आया तो मुझे बजबजाती गन्दगी दिखी, मल मूत्र पर पैर रखते हुए तीर्थ यात्रियों को मैंने तीर्थराज की वंदना करते देखा और यहाँ के लोगो की गरीबी, भूखमरी, बेहाली देखी तो मेरा मन मर्माहत हो उठा। मैंने सोचा हमारा यह शिरोमणि तीर्थ, इतना उत्कृष्ट तीर्थ और यहाँ की इतनी निम्न दशा! इसको ठीक करने के लिए समाज को जगाना चाहिए। गुरुदेव का आशीर्वाद लेकर मैंने लोगो को प्रेरित किया और सबसे पहले श्री सेवायतन के नाम से एक प्रकल्प आगे आया जिसने यहाँ के आस पास के 14 गावों के विकास, मधुबन के विकास का बीड़ा उठाया। बहुत अच्छा कार्य हुआ, 10 साल में ये परिवर्तन आप देख रहे है| सेवायतन आज भी अपने कार्यों को बहुत कुशलता से संपन्न कर रहा है और अभी सेवायतन की नयी अध्यक्षा “रेखा जी पांड्या” अच्छी तरह से कार्य करने के लिए तत्पर हैं। एक पायलट प्रोजेक्ट के अंतर्गत इन 14 गांव में से एक गांव को चुना है, जिसे पूर्णतः आदर्श गांव के रूप में विकसित करने का लक्ष्य 2 साल में रखा है| ऐसा गांव जो स्वस्थ, शिक्षित, संस्कारी और शाकाहारी हो कर समृद्ध बन सके, इसका परिणाम आप सब लोग देखेंगे।

उसके बाद गुणायतन के प्रति मेरी दृष्टि इसलिए बढ़ी कि यह हमारा मूल क्षेत्र है। देश के सब क्षेत्रों में निर्माण हो रहा है लेकिन लोग मूल को भूल रहे हैं| यहाँ इतने बड़े तीर्थ क्षेत्र में लाखों श्रद्धालु आते है, पर ऐसा कोई भी धर्मायतन नहीं जहाँ आकर के जैन धर्म की आधारभूत बातों को जान सके| एक दिन मेरे पास कुछ युवक बैठे थे और उनसे मैंने ऐसे ही चर्चा की कि निर्वाण का मतलब क्या है? लेकिन निर्वाण भूमि में आकर के भी वे लोग निर्वाण का मतलब नहीं बता सके| हमने कहा “गलती इनकी नहीं, गलती समाज की है; हमने ऐसा कोई कार्यक्रम रखा ही नहीं”| बस उसी को लक्ष्य रखते हुए ये गुणायतन की परिकल्पना आयी और गुरुवर के आशीर्वाद और आप लोगो के उत्साह का ये परिणाम है कि गुणायतन का दिनों दिन गुणात्मक विकास होता चला जा रहा है और सारे देश के लोग जुड़ रहे है| गुणायतन के इस कार्य में बहुत तेजी है और इसकी शीघ्र अतिशीघ्र पूर्णता होगी| तो मैंने गुणायतन और सेवायतन इन दोनों ही प्रकल्पों को प्रवर्तित किया, करने में निमित्त बना हूँ और काम पूरा हो रहा है| आप कह रहे है सिद्धायतन के बारे में बताओ, फिर कहोगे कोई और आयतन तो क्या करना चाहते हो? क्या मुझे शिखर जी में ही बैठाये रखना चाहते हो? 

यह दो हैं- जन सेवा और जिन सेवा! गुणायतन और सेवायतन के लिए ही मैंने लोगो को प्रेरित किया है, आज इसकी आवश्यकता है। अन्य जो सिद्धायतन जैसे प्रकल्प लोगो के द्वारा चलाये जा रहे हैं, अच्छे प्रकल्प होते हैं, उनके लिए आशीर्वाद होता है; लेकिन मेरा CONCEPT अलग है, हम साधु हैं, हम इस आसन की मर्यादा को रखते हैं; उसमे हमारा लक्ष्य है कि धर्मायतन वही होना चाहिए जिसमे हम व्रत संयम का पालन करते हुए आगे बढे| सिद्धायतन का जो PROJECT है वो OLD AGE HOME जैसा प्रोजेक्ट है, जो अपने बाल बच्चों से दूर रहने वाले अथवा अपने बाल बच्चों से उपेक्षित होने के बाद अपना जीवन बिताने वाले के लिए एक प्रकार का आश्रय स्थल है| मैं कहता हूँ, दिगंबर समाज के लिए या जैन समाज के लिए वृद्धाश्रम वरदान नहीं, अभिशाप है| हमारी समाज की जो संस्कृति है, जैन धर्म की जो परंपरा है, उसमे वृद्धाश्रम जैसा CONCEPT होना ही नहीं चाहिए| हमारे यहाँ सन्यास आश्रम है, वानप्रस्थ आश्रम है। या तो माँ बाप की बच्चे जिंदगी भर सेवा करें, उन्हें अपने घर से बाहर निकलने की नौबत ही ना आये; उस संतान का जन्म लेना निरर्थक है, जिनके जीते जी और कमाऊ होने के बाद भी माँ बाप को उनकी उपेक्षा का शिकार बनकर घर से बाहर शरण लेनी पड़े; अथवा माँ-बाप का चित्त इतना गौरव से भरा हो कि संतान उपेक्षा करे, उससे पहले ही वैराग्य का रास्ता अपना ले और घर त्याग के संन्यास का मार्ग अपना ले। 

सम्मेद शिखर में आज अगर आवश्यकता है तो ऐसे संस्थान की है जहाँ व्रती लोग अपना व्रती जीवन-यापन कर सकें। मेरे संपर्क में ऐसे बहुत सारे लोग है जो व्रती है और भविष्य में व्रती बनना चाहते है, उनको कुंवे का पानी, शुद्ध भोजन, प्रवचन और समाधि-साधना की तैयारी के लिए प्रशिक्षण मिल सके, लेकिन सम्मेद शिखर में ऐसा कोई प्रकल्प आज नहीं है। गुणायतन ने इस बारे में विचार कर रखा है और गुणायतन के पहले चरण में 50 व्रतीयों के लिए एक ऐसी व्यवस्था है, जिसकी बहुत जल्दी सूचना मिलने वाली है; इसके अतिरिक्त, गुणायतन में एक संलेखना भवन भी बनेगा और उस संलेखना भवन में निष्णात श्रावक रहेंगे। यदि कोई व्यक्ति चाहे कि “मेरा अंत समाधी-पूर्वक,संलेखना पूर्वक सम्मेद शिखर में हो”, तो उनकी पूरी वो व्यवस्था होगी। उनको केवल आना होगा और उनकी निराकुलता से संलेखना होगी, उनकी पूरी सेवा-वैयावृत्ति होगी,यह धर्म का असली रूप है| 

हम पश्चिमी CULTURE की ओर जो ढलते जा रहे हैं, यह बहुत प्रोत्साहन के योग्य नहीं हैं। क्योंकि आज समाज में ऐसी दशा बनती जा रही है की लोग उस ओर विमुख हो रहे हैं; लोगो को उधर जाना पड़ रहा है। लेकिन मैं उन लोगो से कहता हूँ कि इतनी उपेक्षा और तिरस्कार के पात्र बनने के बाद भी नहीं चेतोगे, तो कहा जाओगे? पुण्य के योग से तुम्हें मनुष्य जीवन मिला,सभी प्रकार कि अनुकूलताएं मिली, तो जीवन के चौथे पल में तो व्रत संयम अंगीकार करो| मैं ऐसे ऐसे लोगो को जनता हूँ जो 80 वर्ष कि उम्र में भी रात का भोजन पूरी तरह नहीं छोड़ते; फल आहार के नाम पर “फुल” आहार कर लेते हैं। वो क्या करेंगे, जैन कुल में जन्म लेने के बाद? अब तो चेतो! तो हमे वैसा उपक्रम करने कि आवश्यकता है जिससे जैन धर्म कि स्थाई प्रभावना हो| हर अच्छे कार्य के लिए हमारा आशीर्वाद रहता है। जहाँ तक किसी कार्य में मेरी कोई सीधी प्रेरणा की बात, तो जब तक यह दो पूरी न हों, तीसरी के लिए मेरी कोई प्रेरणा नहीं है, पहले यह तो पूरा करो| “एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाय” की उक्ति को ध्यान में रखना है| जब गुणायतन पूर्ण हो जायेगा, फिर किसी और आयतन की बात आएगी|

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