शंका
नई वस्तु को भगवान के सामने रखने का महत्त्व
समाधान
ये एक भक्ति है। कई जगह ऐसी परम्पराएँ हैं – खेत का पहला धान, पहला वेतन भगवान के चरणों में रखते हैं, इसके पीछे का मनोभाव यह है कि “मैं अपने से ज़्यादा परमार्थ को महत्व देता हूँ”। वह भगवान को खाने के लिए नहीं देते हैं, भगवान के समक्ष त्यागने का भाव है। भगवान हमारे भोग नहीं लेते इसलिए हमारे यहाँ भगवान को केवल त्याग के भाव से चढ़ाया जाता है। जैन परंपरा में इसलिए प्रसाद नहीं है। तो यदि उस दृष्टि से कोई चढ़ाये तो बात अलग है, लेकिन इसमें अतिरेक नहीं होना चाहिए, आप भगवान को जाकर हलवा-पूरी चढ़ाओ तो बातें थोड़ी सी कम जँचती हैं।
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