जैन मुनि अपने जीवन में कितने नियमों का पालन करते हैं?
जैन मुनि के जीवन में २८ मूल गुण है जिनका अनुपालन प्रत्येक जैन मुनि को जीवन की आखिरी सांस तक करना ही है। मूल गुण- जैसे वृक्ष के मूल यानी जड़, जड़ सुरक्षित तो पेड़ सुरक्षित! ऐसे ही जिन मूल गुणों की चर्चा मैं आप सबसे करने जा रहा हूँ, ये एक जैन मुनि जीवन के मूल चिन्ह होते हैं, जड़ हैं, इनका पालन करना ही है।
पाँच महाव्रत– अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के प्रति मूर्ति होते हैं, यह हैं पाँच महा व्रत।
पाँच समिति– १. चलते समय चार हाथ धरती देख कर चलना, २. बोलते समय हित मित्र प्रिय वचनों को बोलना, ३. भोजन शुद्ध और शास्त्र के नियमों के अनुसार ग्रहण करना, ४. किसी वस्तु को उठाने-रखने और स्वयं के उठने-बैठने में सावधानी रखना, और ५. मल-मूत्र का परित्याग भी शुद्ध और निर्जन्तुक स्थान पर करना, यह हमारी पाँच समिति हैं।
पाँचों इंद्रियों पर विजय करना यानि पंचेन्द्रियों के विषयों में राग-द्वेष न रखना, उनसे प्रभावित न होना।
छह आवश्यक – इसमें है १. २४ तीर्थंकरों का स्तवन, २. वन्दना– भगवान की स्तुति, ३. प्रतिक्रमण–किए गए दोषों का शोधन, ४. प्रत्याख्यान– भावी जीवन को निर्मल बनाने का संकल्प, ५. सामयिक – आत्मा में स्थित होने के लिए समता का अभ्यास; और ६. कायोत्सर्ग–शरीर के ममत्त्व को त्याग कर आत्मरति, यह छह आवश्यक हैं जिन्हें जैन मुनि प्रतिदिन करते हैं।
पाँच महाव्रत, पाँच समिति, पंचइन्द्रियरोध, मिल के १५ व छह आवश्यक मिल के २१, फिर ७ गुण शेष हैं; वह हैं अदन्त-धवन– ब्रश नहीं करना, अस्नान– कभी स्नान नहीं करना, भूशयन– सोने के लिए बिस्तर का प्रयोग नहीं करना, तखत पर, शिला पर, चटाई पर ही विश्राम करना। एक-भुक्ति– २४ घंटे में एक ही बार भोजन करना; स्थिति भोजन– खड़े होकर अपने कर-पात्र में ही भोजन करना, केशलोंच– २ माह से ४ माह की अवधि में अपने ही हाथों से अपने सिर और दाढ़ी-मूछों के बालों को उखाड़ फेंकना; और नग्न दिगम्बर रहना! ये २८ मूल गुण सभी मुनियों के जीवन की चर्या का मूल अंग है और यही जैन मुनि की पहचान का आधार भी।
इसके अतिरिक्त जैन मुनि १२ प्रकार का तप करते हैं, २२ प्रकार के परिषहों को सहते हैं, कठिन से कठिन तपस्या और त्याग के मार्ग को अंगीकार करते हैं। यह जैन मुनि की चर्या का एक संक्षिप्त रूप आप सबके सामने रखा है।
Leave a Reply