अवधि ज्ञान और मन: पर्यय ज्ञान को पारमार्थिक प्रत्यक्ष ज्ञान क्यों कहते हैं?

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शंका

अवधि ज्ञान और मन: पर्यय ज्ञान को पारमार्थिक प्रत्यक्ष ज्ञान क्यों कहते हैं?

समाधान

प्रत्यक्ष का मतलब होता है, जिसमें सीधे आत्मा से साक्षात्कार हो और जो आत्मा के अतिरिक्त इन्द्रिय व अन्य माध्यमों से होता है, उसको बोलते हैं परोक्ष! यथार्थ वही प्रत्यक्ष ज्ञान है, जो सीधे आत्मा से प्रकट होता है। अवधि ज्ञान व मन: पर्यय ज्ञान का सम्बन्ध सीधे आत्मा से है, इसलिए प्रत्यक्ष है लेकिन लोक व्यवहार में हम लोग बोलते हैं कि मैंने अपनी आँखों से देखा, प्रत्यक्ष देखा, मैंने अपने प्रत्यक्ष कानों से सुना। लोक व्यवहार में जो आँख से व कान से देखने-सुनने की बातें आती है, यह भी प्रत्यक्ष मानी जाती है। यह लोक व्यवहार की दृष्टि से साम्य व्यावहारिक प्रत्यक्ष है, वैसे ये अप्रत्यक्ष नहीं है, पर लोक भाषा में प्रत्यक्ष कहा जाता है। अवधि ज्ञान व मन:पर्यय ज्ञान, प्रत्यक्ष ज्ञान है क्योंकि यह किसी भी इन्द्रिय, मन आदि के आलम्बन से न होकर सीधे-सीधे आत्मा से होता है। 

सकल प्रत्यक्ष का मतलब यह है, जो देश-काल की सीमा से परे सबको अपना विषय बनाता है और विकल प्रत्यक्ष वो है जो एक सीमागत वस्तु को ही अपना विषय बनाये। मन:पर्यय ज्ञान का जो विषय है, वह एक सीमावर्ती पदार्थ है इसलिए उसको विकल कहते हैं और केवल ज्ञान की कोई सीमा नहीं है, इसलिए उसको सकल कहते हैं। पारमार्थिक इसलिए है कि वास्तव में यह प्रत्यक्ष है और वह लोक व्यवहार का प्रत्यक्ष है। जो असली प्रत्यक्ष है उसका नाम पारमार्थिक प्रत्यक्ष और जो नकली प्रत्यक्ष है उसका नाम साम्य व्यावहारिक प्रत्यक्ष। 

उदाहरण के लिए जैसे, छोटा बच्चा अपने पिताजी के साथ खेलता है, तो कभी-कभी पिताजी घोड़ा बन जाते हैं। आप भी बने होंगे और बेटा अपने बाप के पीठ पर बैठ जाता है और करता है चल घोड़ा चल, तो वो घोड़ा बन गया यह लोक दृष्टि में घोड़ा है। बस ऐसे ही लोक दृष्टि में जो परोक्ष है, उसे भी लोक दृष्टि में प्रत्यक्ष कह दिया जाता है। वह मति ज्ञान है, जबकि अवधि ज्ञान, मन:पर्यय ज्ञान और केवल ज्ञान यथार्थत: प्रत्यक्ष है क्योंकि वो इन्द्रिय और मन के बिना होता है।

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