क्या किसी बालक को भी सल्लेखना दी जा सकती है?
बीस वर्ष की अवस्था में यदि किसी को असाध्य रोग हो जाए, तो भी उसकी सल्लेखना कराई जा सकती है। क्योंकि जाना तो है ही; अब उसकी मानसिकता यदि उस रूप हो, परिवार की मानसिकता अगर उस रूप हो, तो उस बालक को बहुत अच्छे से जगाया जा सकता है और वह अपने शरीर को छोड़ सकता है।
आज से कुछ दिन पहले, साल भर भी नहीं हुआ, सतना में सिद्धार्थ जी की पोती जो लगभग ८-९ साल की थी, उस छोटी सी बच्ची के अंदर ज्ञान था। उसकी बीमारी ऐसी बीमारी थी जिसकी दुनिया में कोई चिकित्सा ही नहीं। जब सब डाक्टरों ने हाथ खड़ा कर लिया, तब उस बच्ची ने खुद अपने संस्कार वश कहा कि “अब हमें कोई दवाई की जरूरत नहीं है, हमें तो आप लोग सही सम्बोधन दो और हमारी समाधि करा दो।” उनके घर में लोगों ने उनकी ऐसी सेवा की और ऐसी व्यवस्था की कि उस बच्ची ने णमोकार जपते-जपते इस दुनिया से विदाई ली। यह किया जा सकता है। लेकिन, अगर कोई असाध्य रोग नहीं हो, तो ऐसा नहीं होता।
मैं आपको एक बात बताऊँ, जब चाहें किसी भी समय सल्लेखना का कोई विधान नहीं है, इसके लिए उदाहरण आचार्य समन्तभद्र महाराज का है। जब समन्तभद्र महाराज मुनि बने, उन्हें भस्मक व्याधि हो गई। भस्मक व्याधि एक ऐसी व्याधि है, जिसमें कितना भी खा लो, सब हजम हो जाए और भूख बनी रहे। मुनि अवस्था में यह संभव नहीं था। तो उन्होंने कहा कि इससे तो मेरा मुनि व्रत चला जाएगा। उन्होंने अपने गुरुदेव से निवेदन किया कि “मुझे समाधि दे दो।” गुरु ने कहा कि “नहीं ! अभी तुम्हारी बीमारी ऐसी नहीं है जिसका कोई प्रतिकार संभव नहीं। मुनि अवस्था में तुम इसका प्रतिकार नहीं कर सकते, तो जिस अवस्था में इसका प्रतिकार संभव हो तुम वैसा करके प्रतिकार करो और जब रोग सीमित हो जाएगा तो प्रायश्चित पूर्वक पुनः दीक्षा ले लेना और अपनी तपस्या पुनः करना।” आचार्य की आज्ञा के अभाव में उन्हें मुनिव्रत छोड़ना पड़ा और उन्होंने अपनी तपस्या को रोक कर, अन्य रास्ता अपनाकर अपनी बीमारी का शमन किया। उनकी बीमारी ठीक हो गई, उन्होंने फिर से मुनि दीक्षा ली और अपने जीवन में अपार साधना की और जैन धर्म का दिग-दिगांत तक डंका पीटा, दुंदुभि बजाई, यह आचार्य समन्तभद्र का उदाहरण है।
यह इस बात का धोतक है कि असमय में समाधि का, सल्लेखना का कोई भी विधान नहीं। संथारा एक प्रक्रिया है और उस प्रक्रिया के तहत ही सब कुछ होता है। भावना भाये सबके हृदय में ऐसे ही सल्लेखना व समाधि का भावना आये।
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