क्यों हैं अष्टमी और चतुर्दशी महत्त्वपूर्ण?
अष्टमी को अष्ट कर्म के नाश का और चतुर्दशी को १४ गुण स्थानों से पार उतरने का प्रतीक माना जाता है।
तिथियाँ सब समान है, लेकिन इस पर एक वैज्ञानिक शोध हुआ है। जैसे इस धरती पर दो तिहाई जल तत्त्व है यानी २/३ पानी है,१/३ ठोस है वैसे ही हमारे शरीर में भी २/३ जल तत्त्व होता है, १/३ ठोस होता है। जैसे समुद्र का जल स्तर चंद्रमा की कलाओं के कारण घटता बढ़ता है वैसे ही चंद्रमा की कलाओं से हमारे शरीर में रहने वाला जल तत्त्व भी घटता बढ़ता है। एक शोध लेख आज से लगभग ३० वर्ष पहले मैंने पढ़ा था उसमें यह लिखा था कि पंचमी, एकादशी, चतुर्दशी और पंदरस, इन तिथियों में हमारे शरीर का जल तत्त्व उफान पर रहता है। ये रिसर्च हुआ था, अमेरिका और यूरोपीय देशों में,जहाँ सर्दी बहुत पड़ती है। वहाँ कोल्ड के शिकार लोग ज्यादा होते हैं जिनको सर्दी ज्यादा होती है। तो सर्दी क्यों होती है? उस पर एक रिसर्च हुआ था। उन्होंने एक डायग्राम बना करके बताया कि इन दिनों में हमारे शरीर का जल तत्त्व ज्यादा उफान पर रहता है यानि स्वाभाविक रूप से हमारे शरीर में जल तत्त्व की अधिकता होती है। हमको साधना के लिए उपवास तो करना ही है, तो किस दिन करें? तो अष्टमी और चतुर्दशी को फिक्स कर दिया कि इन दिनों अगर आप उपवास व्रत करते हैं तो आपके शरीर में harrasment (ह्रास) कम होगा, साधना भी बनी रहेगी।
इसलिए अपने यहाँ अष्टमी चौदस को उपवास करते हैं। उपवास नहीं करते तो एकासन करते हैं। एकासन भी करते हैं, तो बहुत सारे लोग हरी वस्तु का उपयोग नहीं करते, ताकि शरीर में जल तत्त्वों की आवश्यकता कम से कम हो।
Leave a Reply