उपाध्याय परमेष्ठी की पहचान क्या है?
शास्त्रों के विधान अनुसार ग्यारह अंग और चौदह पूर्व के ज्ञाता मुनि उपाध्याय होते हैं। इस हिसाब से वर्तमान में कोई भी उपाध्याय नहीं हो सकते क्योंकि द्वादशांग का आज लोप हो गया। तो गयारह अंग और चौदह पूर्व का किसी के पास ज्ञान नहीं है, द्वादशांग का लोप हो चुका है। लेकिन शास्त्रों में ऐसा उसका दूसरा विधान बताएं कि फिर तो आज कोई उपाध्याय होंगे ही नहीं। फिर तो दूसरी व्यवस्था दी कि उस समय उपलब्ध समस्त ग्रंथों का परिपूर्ण ज्ञान हो और संघ मे उनसे उत्कृष्ट ज्ञान किसी को ना हो वह उपाध्याय बनने के योग्य है ऐसा शास्त्रों में मिलता है। तो क्स्तुतः ऐसे ही मुनि उपाध्याय बन सकते हैं। यह उपाध्याय तो कोई डिग्री नहीं एक दायित्व है जो संघ की व्यवस्था के अंतर्गत होती है। और कोई जरूरी नहीं कि संघ में उपाध्याय हो ही। आचार्य भी उपाध्याय का काम करते हैं। हमारे गुरुदेव आचार्य भी, उपाध्याय भी, साधु भी हैं और सब कुछ हैं। इस धरती में आज की युग में जो कुछ हो सकता है सब उनके पास है।
लेकिन आजकल जिस तरह से उपाध्याय पद की होड़ बनने लगी है, मुनि दीक्षा ही इस कंडीशन पर ली जाने लगी और दी जाने लगी कि उपाध्याय या आचार्य बनेंगे ये सब आगम का अपलाभ है। और मोक्ष मार्ग का या उपाध्याय जैसे गरिमा पूर्ण पद का अवमुल्यन है। इससे समाज को बचना चाहिए और बचाना चाहिए। मैं ऐसे उपाध्याय को भी जानता हूँ जो उपाध्याय बनने के बाद पंडित से तत्वार्थ सूत्र का अध्ययन किए हैं।
Leave a Reply