मेरे एक श्वेताम्बर मित्र के साथ चर्चा के दर्मियान एक प्रश्न उपस्थित हुआ जिसका मैं उत्तर नहीं दे पाया। प्रश्न है- जैसे पानी में अनेक जीव होने पर हम पानी को छानकर पीते हैं। ऐसे ही हवा में भी अनन्त जीव होते हैं, तो उस हिंसा का क्या? श्वेताम्बर इस हिंसा से बचने के लिए मुँह पर पट्टी लगाते हैं, तो ऐसी व्यवस्था दिगम्बरों में क्यों नहीं है?
जो लोग ये बोलते हैं कि पानी, हवा को छान लें, तो पानी को छानना तो सम्भव है, पर हवा को छानना सम्भव नहीं है। हवा को हम जब बांध नहीं सकते तो छानेंगे कैसे? इसलिए छानने की बात ही नहीं है। कितनी भी मुँह में पट्टी रखो, हवा नहीं छनती; जबकि मुख की थूक या लार बार-बार उस पट्टी पर पड़ती है, उसमें असंख्य सम्मूर्छन त्रस जीवों की उत्पत्ति हो जाती है, इसलिए मुँह पर पट्टी ठीक नहीं है। ये मुँह-पट्टी का चलन एक अलग परम्परा है। मैं किसी परम्परा पर कटाक्ष नहीं करता, लेकिन सम्पूर्ण श्वेताम्बर समाज परम्परा में भी मुँह पट्टी का विधान नहीं है। केवल स्थानकवासी और उसके ही एक भेद रूप तेरह पंथ परम्परा में ही मुँह पट्टी का विधान है। शेष में नहीं है।
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