कल रात मैं ऑफिस में बैठकर रजिस्टर देख रहा था तो उसमें मैंने एक शान्तिधारा की बोली ली थी। सन २००९ में उसके लिए ११ हजार रुपये बोले थे और उस बोली का पैसा मैं २००९ से अभी तक नहीं दे पाया हूँ। मुझे बहुत ग्लानि हुई और मैंने साथ-साथ ये भी देखा कि ऐसे लोग हैं जिनकी राशि बकाया है। मैं तो भूल गया था महाराज जी। मैं तो यहाँ सैकड़ों बार आया हूँ और मेरे जैसे बहुत सारे ऐसे लोग होंगे जो भूल गये होंगे। मुझे बहुत ग्लानि हुई। मेरा बेटा आया तो उसके साथ पैसा मँगवाकर आज तुरन्त दे दिया। मुझे क्या प्रायश्चित करना है और आगे ऐसे गलती न हो उसके लिए मार्गदर्शन दें।
आपने जो बात कही वो बहुत गहरी है। जब आप कभी भी किसी धर्म स्थान में जायें, कोई भी बोली लें तो आपको चाहिए कि आप उसे शीघ्र ही चुका दें। कई बार बड़े-बड़े आयोजनों में लोग दान बोल जाते हैं और दान बोलने के बाद उनका पता कुछ लिखा नहीं जाता और जब वो अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं तो सब बातें भूल जाते हैं और अनचाहे ही एक बड़े पाप के भागीदार बन जाते हैं। दान की राशि घोषित करने के बाद, न देना महान पाप का कारण है।
इससे तीव्र अन्तराय कर्म का बन्ध होता है कि व्यक्ति खाने को भी लाचार हो जाये। तो ऐसा पाप जीवन में कभी मत करना, कहीं भी जाओ आप दान राशि कहीं भी बोले हो तो चुकाओ। समय सीमा ले लो, समय सीमा की अवधि में चुकाओ और इसके लिए मैं दो उपाय बोलता हूँ:
पहला तो जहाँ दान बोला है उसे अपनी डायरी में नोट कर लो कि मैंने अमुक जगह दान राशि बोली है और इतनी तारीख तक मुझे ये दान राशि देनी है और जाकर के अपने बच्चों को भी बता दो कि मैं ये दान राशि बोलकर आया हूँ। कहीं अचानक मेरी मृत्यु हुई तो तुम लोग चुका देना। ये आवश्यक है नोट कर लो। आप भूलो नहीं।
दूसरी बात जिस संस्था में आपने दान दिया उस संस्था में आप अपनी पूरी जानकारी जरूर देकर आओ। अपना फोन नम्बर, पता, ई-मेल आईडी नोट कराओ। भले वो नोट नहीं कर पायें। लेकिन आप नोट कराओ कि ‘भाई साहब आप ये लिख लो और हमें रिमाइण्डर भेज देना।’ काम में व्यस्त होने के कारण हो जाता है कि कई बार हम भूल जाते हैं। इसलिए यह एक अच्छा उपाय है। यह तो एक सिद्धान्त है कि पैसा बिना माँगे निकलता नहीं है और माँगे भी कैसे? जब हमारी जानकारी हो तब तो माँगे। तो आप एक काम करो जितने भी लोग आज मुझे सुन रहे हैं, यदि इस पाप से बचना चाहते हो तो याद करो कि पिछले २-४ सालों में आप कहाँ-कहाँ गये थे और आपने कहाँ-कहाँ कितनी राशि घोषित की थी। जो आप के स्मरण में हो उसको नोट करो और नोट करने के बाद सम्बन्धित संस्थानों को सूचना दो, सम्पर्क करो कि आपके यहाँ मेरे नाम की इतनी दान राशि लिखी है या नहीं? नहीं लिखी है, तो हो सकता है कि आपके यहाँ नहीं लिखी गयी हो पर मैंने एक दान राशि बोली थी और मेरी ये दान राशि स्वीकार करो। सबसे उत्तम तो ये होगा कि ब्याज समेत राशि भेजो। तब और पुण्य का बन्ध होगा।
इसका प्रायश्चित क्या है? इसका प्रायश्चित यही है कि २००९ से २०१४ तक का ब्याज जोड़ देना। मूल तो चुका दिया, ब्याज भी चुकाओ ताकि तुम्हारा पुण्य उसी दिन से जुड़ जाये। कई लोग होते हैं जो दान राशि बोल देते हैं तो उसके साथ ब्याज भी चुकाते है। जो न्यौछावर किया उसको भूल गये तो ये अच्छी बात नहीं है। ये भूल हर जगह होती है। लोग मुझसे कहते हैं कि बड़े-बड़े लोग तो इसमें बहुत है। लोग बोल देते हैं बस नाम है, उसके आगे कुछ भी नहीं है। कैसे जानकारी मिलेगी तो इसमें बहुत सारे घुमाव हैं, ये रेलवे की पटरी (ट्रैक) है इसमें चलने वाली ट्रेन लेट भी होगी पर भटकेगी नहीं। जायेगी तो अपने मुख्य लक्ष्य तक जायेगी ही। आज जायेगी, तो भी और कल जायेगी, तो भी। रास्ता यही है और हमने भगवान के वचनों पर भरोसा किया कि इस पटरी को जीवन भर नहीं छोड़ेंगे और पक्का भरोसा है कि मेरी ट्रेन मुक्ति तक जरूर जायेगी। आप लोग अपनी पटरी बदलो, तभी आनन्द आयेगा।
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