शंका
मैं ७४ वर्षीय वृद्ध हूँ। मैं बचपन से नित्य मन्दिर भी जाती रही हूँ और २-३ घंटे पूजा-पाठ भी करती रही हूँ। लेकिन अब मन्दिर दूर होने के कारण मेरा पुत्र रोज मन्दिर तो ले जाता है पर मैं पाँच मिनट ही दर्शन कर पाती हूँ हालाँकि, मैं घर में ही पहले की तरह २-३ घंटे पूजा बिना सामग्री के करती हूँ। क्या मेरी ये पूजा सार्थक होगी?
समाधान
आपका सौभाग्य है कि अशक्त होने के बाद भी आपका बेटा कम से कम आपको मन्दिर तो ले जाता है, आज आपका बेटा आपको cooperate (सहयोग) करता है, तो आप भी अपने बेटे को cooperate (सहयोग) कीजिए। पाँच मिनट भगवान की छवि देखिए और धर्म ध्यान घर में करिए। आर्त्त ध्यान नहीं रखना ही सबसे बड़ा धर्म ध्यान है। इसे शुद्ध रूप में लेकर के चलें।
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