गौ-रक्षा और गौ+दान का ही इतना क्यों महत्त्व होता है? वैसे जानवर तो भैंस, बकरी, भेड़ आदि भी होते हैं।
गौ-रक्षा और गौ-दान को हमारे यहाँ बहुत महत्त्व दिया गया है क्योंकि गाय हमारी संस्कृति में बहुत नज़दीकी से जुड़ी हुई है। हमारे यहाँ परम्परा रही है कि चूल्हे की पहली रोटी गाय के लिए रखी जाती है। माँ के बाद गाय का स्थान होता है। माँ का दूध पीना हम छोड़ते हैं तो गाय का दूध पीने की परम्परा, परिपाटी रही है। तो जिसके दूध के पान से हमने अपने जीवन को सम्भाला है, उसके वंश के जीवन को सम्भालने की जिम्मेदारी भी हमारी हो जाती है। “या श्री सा गौ”, ये आचार्य वीरसेन महाराज की सूक्ति है। आचार्य वीरेसन महाराज ने धवला ग्रन्थ में इसका उल्लेख किया। इसका अर्थ होता है कि “जो भी सम्पत्ति है, वह गाय है।” गाय को श्री (सम्पत्ति) का प्रतीक, आचार्य वीरसेन महाराज ने धवला जैसे ग्रन्थ में लिखा है और इसका प्रभाव भी हमें देखने को मिलता है। हमारी संस्कृति में गाय को गोधन की संज्ञा दी गई है, अन्य को नहीं।
गोधन, गजधन, बाजधन और रतनधन खान।
जग आवे सन्तोषधन, सब जग धूरी समान॥
गोधन का अपना एक प्रभाव है। गाय के गोबर से खाद बनता है, उसके बछड़े बैल के रूप में जुड़ते है। ये सकारात्मक ऊर्जा को देती है, सब को बचाने का हमारा ध्येय होना चाहिए। सब को न बचा पायें तो किसी एक को तो बचा ले, तो बहुत बड़ा काम हो जायेगा।
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