अपने जीवन में उत्साह और उमंग का न होना क्या दर्शनावर्णी ज्ञानावर्णी कर्म का उदय समझना चाहिए? अपने जीवन में उत्साह और उमंग को कैसे विकसित करें?
उत्साह और उमंग का न होना ज्ञानावर्ण और दशनावर्ण कर्म का फल नहीं है। उत्साह और उमंग का न होना वीर्यान्तराय कर्म के तीव्र उदय का फल है। जिनके तीव्र वीर्यान्तराय कर्म का उदय होगा वे उत्साह और उमंग से शून्य हो जाते हैं। पर इसके साथ-साथ किसी-किसी के टेंशन के कारण भी ये सब हो जाता है। तो अन्तरंग में वीर्यान्तराय कर्म और उसके साथ-साथ मोहनीय कर्म कषाय के उदय में उनकी ऐसी परिणति हो जाती है और इसके साथ-साथ असाता का जोड़ जुड़ जाता है। ये तीनों मिलकर के इंसान की कमर तोड़ देते हैं।
इसको कैसे जगायें? उत्साह और उमंग के उत्पन्न होने के अन्तरंग कारण में कर्म है, बाहरी कारण में है बाहर की परिस्थितियाँ। ऐसे समय में अन्दर के उत्साह और उमंग को कैसे जगाएँ? सबसे पहले जिन परिस्थितियों के कारण मन में हताश छाई है, उनके साथ आप अपना ताल-मेल बैठाने की कोशिश करें। उसके बाद हर बात को सकारात्मक तरीके से देखना प्रारम्भ करें। तीसरी बात, आप अपने आत्म विश्वास को जगाएँ। प्रायः जिनका उत्साह और जिनकी उमंग कम हो जाती है, उनका आत्मविश्वास बहुत क्षीण हो जाता है। इसके कारण उनकी नकारात्मकता बढ़ जाती है। इसका नतीजा ये होता है कि चाह कर के भी वे यह नहीं कर सकते हैं। अपनी सारी क्षमता और शक्तियों को ये भूल जाते हैं। आत्मविश्वास को हमेशा बढ़ाये रखने की कोशिश कीजिए। आप का मनोबल ऊँचा होगा। नकरात्मकता से आप बचेंगे आप सब कार्य कर सकते हैं।
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