मैं दिन में तीन-चार घंटे धर्मध्यान में बिताती हूँ। पहले मैं मन्दिर जाती थी लेकिन अब मेरे भाव वहाँ नहीं लगते क्योंकि वहाँ एक ही परिसर में बहुत से धर्म मन्दिर है। घर पर ही रहकर आपका और भगवान का ध्यान करती हूँ इससे मुझे कोई दोष तो नहीं लगेगा?
घर से मन्दिर दूर है। और वहाँ जाना प्रैक्टिकल नहीं है, तो अपनी धार्मिक क्रियाओं को छोड़ना ठीक नहीं है। जितना बन सके आप घर में बैठ कर धर्मध्यान करें। और धर्मध्यान करने से पाप कभी नहीं लगता है। धर्मध्यान चाहे आप घर में करो या मन्दिर में करो कर्म केवल पुण्य का ही निमित्त है। लेकिन एक ही नुकसान है, घर में धर्मध्यान का पुण्य घर जैसा होगा और मन्दिर में धर्मध्यान का फल मन्दिर जैसा होगा। मन्दिर में जैसी एकाग्रता होगी वैसी एकाग्रता घर में नहीं हो सकती है। जहाँ तक सम्भव हो सके मन्दिर नित्य जाइये और नहीं करने से अच्छा है कि जितना बन सके, करो। अपना काम हो जायेगा।
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