हमारी किस्मत में जो लिखा होता है वही हमारे साथ होता है या वही होता है जो हम स्वयं करते है। बच्चे लव मैरिज कर लेते हैं, तो क्या ये किस्मत है या स्वयं की करनी है?
एक विचारक ने बहुत अच्छी बात लिखी कि ‘मैंने कोशिशें बहुत की पर कामयाबी नहीं मिली, पता नहीं मेरी किस्मत में क्या लिखा है? तो जवाब मिला की कोशिश करते रहो कामयाबी मिलेगी।’ शायद किस्मत में यही लिखा है।
बन्धुओं मेहनत का फल होता है। बहुत सारे कार्य ऐसे होते हैं जो पुरूषार्थ से सम्पन्न होते हैं। लेकिन बहुत सारे कार्य ऐसे होते है जो हमें संयोग से मिल जाते है। लव मैरिज के संयोग बनाए गये है, बने नहीं हैं। मैंने एक मनोवैज्ञानिक से पूछा कि “आज इतनी सारी लव मैरिज होती हैं और ‘अफेयर’ होते हैं, तो आप इसे किस अर्थ में लेते हो?” उन्होंने एकदम स्पष्ट शब्दों में बोला कि ‘कोई लव वगैरह नहीं होता है, ये केवल लैंगिक सम्बन्ध (sexual relationship) होता है जो दो युवाओं को अपने नज़दीक लाते हैं और अधिकतम लोगों की गाड़ी आगे निभती ही नहीं है।” उनकी गाड़ी खींचातानी से चलती है इन सब को हम कर्म का नियोग नहीं मानेंगे। कर्म का नियोग तो उसे माने जो अचानक संयोग बने।
जैसा हमने जय कुमार और सुलोचना के बारे में सुना है। चकवा और चकवी को देखा और उनको जाति का स्मरण हो गया। और दोनों का आपस में संयोग हो गया। ये सब चीजें हैं जिसमें भाग्य या किस्मत या पूर्व जन्म का संयोग बनता है। आज तो अपने आप संयोग बनाए जाते हैं। इसलिए आप देखो कि लोग एक दूसरे से जुड़ते हैं और एक-दूसरे से अलग भी हो जाते हैं। विवाह भी होता है और तलाक भी होते हैं। ये एक बड़ी विचित्र स्थिति है इससे लोगों को बचना चाहिए।
जीवन में हम ऐसी चीजों का कैसे उपयोग करें? जब भी हम कोई अच्छा कार्य करें तो ये सोचकर के करें कि हम जो करेंगे वैसा परिणाम होगा लेकिन पर्याप्त कोशिश करने के बाद भी अच्छा परिणाम न आये तो ये सोचो कि यहीं मेरे भाग्य में था। यदि कोई मन के विरूद्ध बात घट जाये और मन अशांत होने लगे तो यही सोचो कि शायद मेरे भाग्य में यही था और यही मुझे मिलेगा। तो आप का काम अच्छे से चल सकता है और जीवन की गाड़ी सन्तुलित (balanced) हो सकती है।
Mai apni shanka kaise bheju?