घर-परिवार में नारी की क्या भूमिका होनी चाहिए?
बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न पूछा है कि एक परिवार में नारी की क्या भूमिका होनी चाहिए? यथार्थतः यदि विचार किया जाए तो परिवार के संचालन में जो नारी की भूमिका होती है वह किसी अन्य सदस्य की नहीं होती। कहते हैं कि नारी परिवार की धड़कन होती है। Heartbeat अगर ठीक ढंग से काम करती रहे तो सब काम होता है। अगर Heartbeat गड़बड़ा जाए तो बहुत मुश्किल होती है।
शरीर में नाड़ी का बहुत बड़ा रोल होता है अगर नाड़ी fail हों जाए तो जिंदगी खत्म हो जाती है। शरीर में नाड़ी का महत्त्वपूर्ण स्थान है, तो समाज में नारी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। नाड़ी तन्त्र यदि फेल हुआ तो हमारा शरीर अचेत हो जाता है और यदि समाज का नारी तन्त्र नष्ट-भ्रष्ट हो गया तो समाज अचेत हो जाता है। समाज को जीवंत बनाए रखने के लिए नारी तन्त्र को बहुत ही संस्कारित और प्रौढ़ -पुष्ट होने की ज़रूरत है।
आपने पूछा है कि घर परिवार में नारी की क्या भूमिका है? नीतिकारों ने लिखा है कि ‘नारी को तीन लोक की नाभि मानो!’ इसलिए वो परिवार की नाभि है। परिवार से समाज और समाज से लोक संरचित होता है। इसलिए उसकी बड़ी भूमिका है। प्रसंग आया है, तो मैं कहना चाहता हूँ कि एक नारी के कितने रूप होते है। और उस नारी को अपने रूपों में कहाँ-कहाँ खरा उतरना चाहिए।
शास्त्रकरों ने नारी के पाँच रूप बताए है।
(क) कन्या –
नारी की शुरूआत कन्या के रूप में होती है और कन्या के लिए भारतीय परम्परा में “उभयकुल विवर्द्धनी” कह करके मांगलिक प्रतीक कहा है। सचित्र मंगल के अन्तर्गत कन्या को एक मंगल माना है। आज भी कुछ परम्पराएँ ऐसी है जो अपने घर-परिवार के मांगलिक कार्यों में कन्या भोज देते हैं। उसकी शुरूआत करते है। तीर्थंकर के यहाँ भी ५६ कुमारिकाएँ आती हैं। कन्या नारी का पहला रूप है, इसका मतलब प्रत्येक कन्या को आदर्श कन्या होना चाहिए। आदर्श कन्या मतलब जो शिक्षित हो, संस्कारित हो, सदाचारी हो और जिसके कुलीनता साथ जुड़ी हो।
सबसे पहली आवश्यकता है कि अपने कन्या के रूप को अच्छी तरह से निखारें। आज का युग बड़ा विकृत होता जा रहा है और कन्याओं की वो पवित्रताएँ नष्ट होती जा रही हैं। उसके पीछे का कारण यही है कि लोग अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं और अप-संस्कृतियों को दिनों दिन अपनाती जा रहे हैं। यहाँ ज़रूरत है कि प्रत्येक कन्या को ठीक ढंग से समझाएँ कि ये कन्या कल एक परिवार की प्रमुख बनकर संपूर्ण नारी जगत की मुखिया बनने वाली है। इसको क्या करना चाहिए? आदर्श कन्या वो है जो अपने माँ-बाप की बातों की अवहेलना न करे। जो अपने सांस्कृतिक मूल्यों का कही क्षरण न होने दे। जो अपने संयम की मर्यादा को कभी खण्डित न होने दे। अपने शील और सदाचार का पालन करें, कुलीनता का ख्याल रखें। वो पढ़े-लिखे, कोई बुराई नहीं आधुनिक बने। इसमें कुछ भी असह्य नहीं है, लेकिन आधुनिकता के अन्धानुकरण में अपनी मौलिकता को खो न दे इसकी सावधानी ज़रूर रखे। हमारी मौलिकता कभी नष्ट नहीं होनी चाहिए। आज कल ये बहुत गड़बड़ी होती जा रही है।
(ख) पत्नी या वधू –
जब लड़की का विवाह होता है, तो पत्नी बनती है। एक आदर्श पत्नी या एक आदर्श वधू कौन हो सकती है? वो जो पति परायण हो, पतिव्रता हो। इसका मतलब एक-दूसरे के बीच यौन सदाचार हो, इतना ही नहीं एक दूसरे की भावनाओं को समझते हुए एक-दूसरे के पूरक और प्रेरक बनना वास्तविक दाम्पत्य जीवन का आधार है। वो एक पत्नी है जो पति के साथ-साथ चले। पत्नी के लिए शब्द दिए गये हैं -सहधर्मिणी, धर्म-पत्नी, धर्मसहायिका! उसका धर्म क्या है? पति के जीवन को ऊँचा उठाने में जो हमेशा सहयोगी और सहगामिनी बनकर चले और हर प्रकार के उसके हितों को पूरा करे, एक आदर्श पत्नी बने।
आजकल की पत्नी का मतलब वह है जो पति पर तनी रहे, उसका नाम पत्नी है। मामला गड़बड़ हो जाता है।
हमारा इतिहास बताता है कि ऐसी-ऐसी पत्नियाँ हुई जिसने ‘कालिदास’ जैसों को भी विद्वान् बना दिया। श्रेणिक जैसे धर्मभ्रष्टों को धर्मात्मा बना दिया और ‘तुलसी दास’ जैसे विषय लोलुपी को राम भक्त बना दिया। ये उत्तम पत्नी के उदाहरण हैं। उन उदाहरणों को आज पुनः स्थापित करने की जरूरत है। आज ऐसे कम उदाहरण देखने को मिलते हैं। आज पति-पत्नी नहीं, Husband wife हैं।
एक दिन एक युवक ने मुझसे पूछा कि ‘महाराज (Wife) का मतलब जानते हो?’ हमने कहा कि ‘हमने कभी Wife को ही नहीं जाना तो Wife का मतलब क्या जानेंगे? Wife का मतलब तो Wife वाले लोग जाने।’तो उसने कहा ‘महाराज! Wife की स्पेलिंग (Spelling) मालूम है?’ मैंने कहा कि ‘मुझे नहीं मालूम! तू बता क्या होती है?’ उसने कहा कि ‘महाराज! Wife की Spelling होती है Wife- Worries invited for ever- हमेशा के लिए चिंताओं को आमंत्रित कर लेना। आखिर ऐसा क्यों? सही धरातल में खड़े न हो पाने का ये परिणाम है।
(ग) माँ –
जब वो सन्तान को जन्म देती है तब वह माँ बनती है। एक माँ अपने बच्चे का जितने अच्छे तरीके से लालनपालन कर सकती है वैसे पिता नहीं कर सकता। एक माँ ही ऐसी है जिसके सन्तान के जन्म से पूर्व ही रिश्ता बनता है। माँ का रिश्ता तो जन्म से पहले ही हो जाता है। बाक़ी सारे रिश्ते तो जन्म के बाद बनते हैं। तो हर स्त्री को जब वो विवाहित हो और पत्नी बने, सन्तान को जन्म दे तो एक आदर्श माँ के रूप में प्रकट होना चाहिए। उनके भीतर का मातृत्व प्रकट हो। मातृत्व का मतलब? अपनी ममता और प्रेम के साथ अपने बच्चे का इस तरह से लालन-पालन करें कि उसका शारीरिक, भावनात्मक, नैतिक, सब प्रकार का विकास हो सके। एक योग्य सन्तान को जन्म देने का श्रेय पा सके। माँ की बड़ी भूमिका है।
आप कौरवों और पांडवों को देखो। पाण्डव पाँच थे और कौरव सौ थे। लेकिन कौरवों का क्या हाल हुआ और पांडवों की स्थिति कैसी हुई। कौरवों के नाम ही दुर्योधन, दुःशासन नाम ही उल्टे-पल्टे हैं कि कोई पसन्द ही न करे। आज किसी को कौरव कह दो तो वह कौरव कहलाना पसन्द नहीं करता क्योंकि कौरव कुसंस्कार के द्योतक हैं। उनके अन्दर संस्कार थे ही नहीं; और पाण्डव धर्म के प्रतीक! कारण? कौरवों को उनकी माँ गांधारी ने कभी देखा ही नहीं आँख पर पट्टी लगाएँ रखी। उनको कभी माँ का साथ ही नहीं मिला तो संस्कार कहाँ से आते? दूसरी ओर पांडवों को विपत्ति के काल में भी माता कुन्ती का साथ मिलता रहा वो उनके साथ वनों में भी रहीं। सदैव माँ का साथ रहा इसलिए वो पाण्डव सदा संस्कारित बनकर मानवता के आदर्श बन गए। कौरव संस्कारहीन होने के कारण पूरी मानव जाति के लिए कलंक बन गए। ये भूमिका है एक माँ की, जो सिर्फ माँ कर सकती है। इसलिए एक अच्छी माँ बनना नारी की ज़िम्मेदारी है।
आजकल ये कम होता जा रहा है। आजकल जन्म देने की भी लोगों में तत्परता नहीं होती है। आज कल लोग कहते हैं कि ‘हम बच्चो की प्लानिंग करते हैं।’ बच्चा भी planning से पैदा करते हैं। क्या है ये? सिस्टम बिगड़ गया है। और समय से पहले बच्चा आ जाए तो उसे रखना नहीं चाहते। भ्रूण हत्या जैसा क्रूरकृत्य उसका ही परिणाम है। कभी-कभी उसका परिणाम ये आता है कि उनकी कोख ही छिन जाती है। तीन दिन पहले मैसेज के द्वारा एक बहन का प्रश्न आया था। उसमें उन्होंने कहा था कि इसका आप उल्लेख मत कीजिएगा, टी.वी. पर मत बोलिएगा। एक भयानक स्थिति है, कि उसकी शादी को १ साल हुए, ‘पेट में दो बच्चे हैं, बच्चे पेट में आये ३-४ महीने हो गये और इस स्थिति में उसकी सास उन बच्चों को बाहर कराना चाहती है। पति भी यही चाहता है और उसे प्रताड़ित कर रहा है। मैं क्या करूँ?’ ये उसकी वेदना थी। ये समाज कहाँ जा रहा है? माँ बनने के बाद मातृत्व देने को तैयार नहीं है, कोई माँ बनने को तैयार नहीं, ये बहुत बड़ी गड़बड़ी है। केवल पैसा कमाना एक स्त्री का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। उसको एक अच्छी माँ बनना चाहिए। आया को तो ४-५ हजार रुपये महीने में लाया जा सकता है, और माँ? माँ तो बस जिंदगी में एक और एक ही होती है। उसे दोबारा नहीं लाया जा सकता। इसलिए माँ अपनी सन्तान को दे सकती है वो दूसरा कोई नहीं दे सकता है।
(घ) भार्या –
भार्या का अर्थ होता है परिवार का भरण-पोषण करने वाली। इसका तात्पर्य है कि घर की आन्तरिक व्यवस्थाओं का संचालन एक स्त्री ही कर सकती है। ये गुण प्रकृति ने स्त्री को ही दिया है। इसलिए स्त्री को चाहिए कि अपने इस रूप में भी वो खरी उतरे और इस कार्य को बड़े अच्छे से करे। लेकिन आजकल लड़कियाँ पढ़ती हैं, तो उनको गृहकार्य में उनकी कोई रूचि ही नहीं होती।
एक लड़की की शादी हुई और शादी होने के बाद बड़ी मुश्किल हुई। लड़की hi-fi परिवार से थी और लड़का साधारण परिवार का था, बड़ी कम्पनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। शादी के बाद पता लगा कि लड़की को खाना बनाना ही नहीं आता। बाजार से तैयार खाना (ready to eat) लाकर खाना पड़ रहा है। लड़के को ये बात पची नहीं, उसने अपनी सास से पूछा कि ‘क्या बात है? आपकी बेटी को खाना बनाना ही नहीं आता?’ सास बोली कि ‘हमने अपनी बेटी को खाना बनाने के लिए थोड़े ही पढ़ाया है?’ क्या उत्तर है? आजकल की माताएँ ऐसा करती हैं। अपनी बच्चियों को खाना बनाना नहीं सिखाती हैं। जबकि जीवन में सबसे ज़्यादा ज़रूरी भोजन है।
ध्यान रखो कि अपने हाथ का खाना शरीर पर लगता है बाजार का खाना नहीं। किसके लिए कमा रहे हो? ऐसा लगता है कि जो अपने बच्चियों को खाना बनाना नहीं सिखातीं वो दहेज़ में एक बाई भी भेजें। घर का काम करना भी जिसको भार लगे वो स्त्री ही इस धरती की भार है। उसको चाहिए कि ठीक ढंग से बनाए एक-दूसरे को शेयर करें। भार्या बहुत बड़ा रूप है। आजकल किसी का भरण-पोषण नहीं। पति पत्नी और अपने बच्चों तक ही सीमित हो रहे है। परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति दृष्टि ही खत्म हो रही है। यहाँ बहुत सावधानी की आवश्यकता है। सजगता की आवश्यकता है। यह एक भार्या का रूप है।
( ङ ) कुटुम्बिनी –
आजकल कुटुम्ब संस्था ही खत्म हो गई। कुटुम्बिनी जो अपने चार रूपों में खरी उतरती है, तो उसे अपने इन चार रूपों में कुटुम्ब का दायित्व मिलता है और फिर कुटुम्ब बनकर अपने पाँचवें रूप में खरी उतरती है।
ये पाँचों गुण जिस नारी में होते हैं वो नारी सारे जगत में पूज्य बन जाती है। इसलिए ये पाँचों रूपों में खरे उतरने की जरूरत है। आपने पूछा है कि घर परिवार में नारी का क्या रूप होना चाहिए। बस मै इतना ही कहना चाहता हूँ कि नारी को आत्मीयता, ममता, वात्सल्य, स्नेह, सहिष्णुता की मूर्ती बनकर परिवार में समरसता का रूप बनाना चाहिए। ये सब काम नारी जितनी आसानी से कर सकती है, पुरूष नहीं कर सकता। मैं समझता हूँ कि इस विषय में इतना प्रकाश पर्याप्त है।
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