शंका
हमारे यहाँ कुएँ के जल से ही चौका लगता था, लेकिन अब नल और बोरवेल (जेटपम्प) का पानी लेने वाले साधक भी आते हैं। ऐसे में हमारा क्या कर्तव्य होना चाहिए?
समाधान
नल और जेट पंप का पानी लेने वाले साधक आते हैं तो ये थोड़े ही कहते हैं कि ‘कुएँ का पानी मत दो!’ यदि वो ये कहते हैं कि ‘कुएँ का पानी मत दो, मुझे नल और जेटपम्प का पानी ही दो!’ तो ये तय मानकर चलना कि जब नल और जेट पंप के पानी से श्रावक का धर्म नहीं पलता तब साधु का क्या पलेगा? इसलिए जब “मन, वचन, काय की शुद्धि, आहार-जल शुद्ध है” बोलते हो, तब शुद्ध जल हो तो शुद्धि बोलो नहीं तो शुद्धि किस चीज की? आप वो करो जो आगम के अनुकूल है हमारी चर्या के अनुकूल है। तभी काम होगा।
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