पर्वतराज शिखरजी की वन्दना करने के लिए बहुत तीव्र भाव होता हैं। पर्वत पर चढ़ने के बाद, वहाँ जाकर हम लोगों की विशुद्धि बढ़ती है कि अब यही से मोक्ष को जायें। लेकिन चढ़ते समय इतनी थकान महसूस होती है, परिणाम स्वरूप ये भाव होता है कि अब नहीं आयेंगे। तो उस समय क्या पाप बन्ध होता होगा?
ये मन की दुर्बलता है। जब शरीर की हालत पस्त हो जाती है, थकान बढ़ जाती है। उस समय मन डाँवाँडोल (अस्थिर) होने लगता है। उस समय लोग कहते हैं कि ‘हे भगवान! हो गई वन्दना। अब तो ये आखिरी वन्दना है।’ ऊपर जाने के बाद भगवान आपकी व्यथा को सुनते हैं। आपकी बैटरी को फिर से चार्ज कर देते हैं। नीचे आते हैं, तो फिर दूसरे-तीसरे दिन आप समर्थ हो जाते हैं ऊपर वन्दना करने के लिए। ये मन की दुर्बलता है।
मैं मानता हूँ कि ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि इतना होने के बाद भी कोई भी बंदा ऐसा नहीं होता जो कहता हो कि ‘जिंदगी में दोबारा शिखरजी नहीं आऊँगा।’ एक मात्र यही तीर्थक्षेत्र है जहाँ पर आने के बाद यहाँ से जाते समय सोचता है कि’ हे भगवान! बार-बार आपके दरबार में हाजरी लगाता रहूँ। मेरा अन्तिम मरण समाधि यहीं पर हो।’ ये भाव बनाकर के जाओ तो तुम्हारा काम हो जायेगा। और इस भाव को जागरूक करने के लिए रोज घर बैठे बैठे सम्मेद शिखर की भाव वन्दना करो। रोज आँखें बंद कर के भाव वन्दना करो। भाव वन्दना का बड़ा प्रभाव होता है। भाव वन्दना यदि आप घर बैठे करके करोगे तो शिखरजी से जुड़ाव होगा। आपके कर्म का ऐसा क्षयोपशम होगा, वीर्यान्तराय का क्षयोपशम बढ़ेगा और आप ऐसे पर्वत को अशक्त होने के उपरान्त भी चढ़ने में समर्थ हो जाओगे।
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