मैं अमेरिका में रहती हूँ। वहाँ पर कोई जैन मन्दिर नहीं है। वहाँ एक हिन्दू मन्दिर है जहाँ पर एक वेदी पर एक दिगम्बर और एक श्वेताम्बर प्रतिमा विराजमान है। जिसे कभी किसी ने विराजमान कर दिया था और वहाँ उनका ६-६ महीने तक अभिषेक भी नहीं होता है। ६ महीने में एकाद बार कोई उसे पोंछ देता है। मैं अभी तक तो वहाँ जाती थी पूजन करने के लिए। अब वहाँ जाने का मन नहीं होता। मैं व्रत उपवास करती हूँ, घर में ही पाठ जाप आदि कर लेती हूँ। क्या मेरा ये पाठ-जाप सार्थक होगा?
निश्चित ही आप का ये परम पुण्य है कि अमेरिका जैसे क्षेत्र में रहने के बाद भी आपकी धर्म निष्ठा गहरी है। आप धार्मिक ही नहीं, अपितु संयम की राह पर भी अग्रसर हो गयी हैं। ये उदाहरण है उन लोगों के लिए जो देश काल का बहाना रचा कर धर्म से दूर होते हैं।
देव दर्शन तो आप कर ही रही हैं पर उसको करना, न करना लगभग एक बराबर है। क्योंकि वहाँ उसकी व्यवस्थाएँ अनुकूल नहीं है। जो आगम के अनुरूप होनी चाहिए। और वीतरागता भी पूर्ण तरह से सुरक्षित नहीं है। वह उस रूप का आयतन नहीं है, जिसे हम सम्यक् धर्मायतन की श्रेणी में रख सकें। आप जो कुछ कर रही हैं, जिनवाणी की साक्षी में पाठ-जाप करके अपना व्रत उपवास कर रही हैं, वो करते रहिए और ऐसी भावना भाइये कि आप जहाँ रह रही है, वहाँ मन्दिर हो जायें, आपके घर के पास मन्दिर हो जाये या आप का घर मन्दिर के पास चला जाये। सारी समस्याओं का समाधान मिल जायेगा। और जब तक ऐसा नहीं हो रहा है, अपने पुण्य को इसी तरह से गाढ़ा करते रहें। आप यू-ट्यूब के माध्यम से या धार्मिक चैनलों के माध्यम से जब तक ऐसा नहीं होता, भगवान का अभिषेक देखें और फिर उसके बाद अपनी धार्मिक क्रियायें करें। और रोज यहीं भावना भाएं कि ‘भगवान! कब आप का साक्षात् दर्शन मिले और मन्दिर जाने का अवसर मिले?’
यदि हो सके तो आप गृह चैत्यालय बना लें। गृह चैत्यालय बनायेंगे तो आप के जैसे अन्यों का भी उद्धार हो जायेगा। अब आप एक जिज्ञासा रख सकती हैं कि ‘गृह चैत्यालय में नित्य अभिषेक कैसे करें और सूतक-पातक में कैसे करें?’ उसके विकल्प में आपको बताता हूँ कि आप रत्न की, स्फटिक मणि की प्रतिमा रखें। आपकी समस्या का समाधान हो जायेगा। अभी गुणायतन से जुड़ा हुआ एक युवक है, विवेक जैन, जो इन दिनों मलेशिया और सिंगापुर में रहता है। बहुत धार्मिक प्रवृत्ति का युवक है, ज्यादा उम्र भी नहीं। बहुत सादगी और सदाचार से रहने वाला युवक है। उसके सामने ये समस्या आई तो मैंने उससे कहा कि तुम एक भगवान की प्रतिष्ठा कराकर ले जाओ। हज़ारीबाग़ के पंचकल्याणक में स्फटिकमणी की प्रतिमा हमने प्रतिष्ठित करके दी। वह नित्य उसकी पूजा अर्चा करता और अपना धर्म ध्यान करता है। और बड़े आनन्द से अपने जीवन का क्रम चला रहा है। उसके रहने से उसके आस-पास अन्य लोग भी लाभ ले रहे है। और यही नहीं है, तो आप कहीं से छोटी सी ५ इंच की चल प्रतिमा को अपने साथ शुद्धि पूर्वक ला सकते हैं और ले जा सकते हैं। यदि किसी परिस्थिति वश उस प्रतिमा का अभिषेक न हो तो आपको कोई दोष नहीं है। आप इसी संकल्प के साथ उनकी प्रतिमा को विराजमान करें, कि कम से कम जिन बिम्ब के दर्शन तो मिलते रहे, ताकि मैं अपनी आवश्यक क्रिया और संकल्पों का पालन करता रहूँ। धर्म के क्षेत्र में सारे रास्ते खुले हुए हैं, आप इसी तरह से करते रहेंगे, तो काम होगा।
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