वैसे तो मन्दिर जाकर रोज़ पूजा करते हैं लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि सुबह कहीं जाना है, नित्य वाले कार्यक्रम नहीं हो पाते हैं, रास्ते में ही माला जप रहे हैं, पूजा कर रहे हैं। वो भाव तो नहीं होते है, जो भाव मन्दिर में लगते हैं। तो ऐसे में क्या करें?
निश्चित ही भाग दौड़ करने वाले का धर्म ध्यान छूटता है। मन्दिर में जो पाठ-पूजा स्थिर हो के होती है, वह उड़ते हुए नहीं हो सकती है। कोशिश करें कि हमें कहीं जाना है, तो सुबह की क्रियाएँ करने के बाद ही जाना हो। मैं जानता हूँ कि मजबूरी है, सुबह जल्दी ही जाना पड़ता है। एक इसका उपाय है कि आप घर से अभिषेक नहीं कर सकते, पाठ नहीं कर सकते है, तो कुछ ऐसी सेटिंग बनाइये कि जहाँ जाये वहाँ पूजा पाठ कर लें। उसके बाद हम अपनी दिनचर्या को शुरू करें। ये ज्यादा लाभदायक होगा, ये अपने हाथ में है इसे हम कैसे manage करते हैं। कोशिश करनी चाहिए कि मेरे आवश्यकों में कोई ढील नहीं हो। ढील इसलिए है कि आपका पक्का नियम नहीं है कि ‘अभिषेक पूजन करने के बाद ही खाना खाऊँगा’, तो चल जाता है। मैं तो कहता हूँ कि आप नियम ले लो, मामला अपने आप सलट जायेगा।
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