स्वर्गवासी स्वजनों को बार बार याद करना क्या सही है?

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शंका

अपने पूज्य माता-पिताजी, सगे संबंधी व दोस्त आदि का परलोक जाने के बाद स्मरण करने से क्या हमें कोई दोष लगता है? उनके जीवन काल में हम से जाने-अनजाने में कोई त्रुटि हो गई हो तो उसका निवारण कैसे करें?

समाधान

परलोक जाने के बाद हम लोग उन्हें याद करते हैं, लेकिन ये तय है कि जो परलोक चला जाता है वह हमें कभी भी याद नहीं करता। इस बात का प्रमाण ये है कि हमने आज तक जो मनुष्य जन्म पाया तो निश्चित ही किसी न किसी को बिलखते छोड़कर के यहाँ आये होंगे। लेकिन कभी आपको याद आया कि मेरे कोई माँ-बाप, भाई-बहन, पति-पत्नी, बच्चा-बच्ची भी थे? कभी याद आया? नहीं आया। यही संसार की रीत है कि कोई किसी को याद नहीं करता है। तो तय मानना कि हम याद करते हैं। वे हमें कभी याद नहीं करते हैं। उनका तो चैप्टर बदल गया।

 वो परलोक में कहाँ गये? वही जाने। अब रहा सवाल हमारा- परलोक में जाने वाले व्यक्ति को याद करने का अर्थ है अपने मोह को बढ़ाना! उसमें हाथ कुछ भी नहीं आना है, तो मोह बढ़ाने की जगह हम अपने मोह का नियंत्रण करें। यदि आप अपने बड़े-बुजुर्गों का मान रखना चाहते हो तो सबसे अच्छा कार्य ये है कि उनका नाम लेने की जगह उनके आदर्श के अनुरूप काम करें, ताकि लोग कहें कि ये आदमी उस व्यक्ति का बेटा है और उससे भी एक कदम आगे चलकर के काम कर रहा है। ये सबसे अच्छा कार्य है। 

उनके साथ जाने- अनजाने में कोई त्रुटि हो गई हो तो मैं कहता हूँ कि जीते जी क्षमा माँग कर अपने और सामने वाले की मन की गाँठ खोल लो। चले जाने के बाद तुम अपनी गाँठ तो खोल सकते हो पर उस जीव की गाँठ खुले न खुले, इसकी कोई गारंटी नहीं है। दस-दस भव तक बैर की गाँठ बँधी रहती है। इसलिए कोई जाता हो तो पहले ही क्षमा याचना कर लो।

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