आज की युवा पीढ़ी अपने अभिभावकों के कहने पर मन्दिर तो जाती है लेकिन उनका प्रश्न होता है कि हमें दान, पशुओं को आहार और ग़रीबों को भोजन कराने से पुण्य हो जाता है, तो मन्दिर क्यों जाना क्यों?
निश्चित रूप से दान, आदि सत्कर्म करने से पुण्य का बन्ध होता है लेकिन उसके साथ मन्दिर जाने का अपना एक महत्त्व है। मन्दिर जाने से आपका यह पुण्य क्षीण नहीं होता अपितु मन्दिर जाने से ऐसे कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। एक बात ध्यान रखना चाहिए कि दया, करूणा का कार्य करने से केवल पुण्य मिलता है और मन्दिर जाने से हमें जीवन की सही दिशा मिलती है। सम्यक् दर्शन की प्राप्ति होती है। भगवान के स्वरूप में हमें अपनी आत्मा के स्वरूप का बोध होता है, अपनी आत्मा की पहचान होती है। जीव का कल्याण तभी होगा जब जीव अपने आपको पहचानेगा। इसलिए जितने भी आप दान आदि के कार्य करते हैं वो करें, परन्तु भगवान के दर्शन व वंदन आदि से अपने को दूर न करें, ताकि आपको अपने स्वरूप का पता लगे। आप यह सब किस लिए कर रहे हैं, ये भी तो पता होना चाहिए। हम केवल वैभव पाने के लिए ये सब कर रहे हैं? या अपने जीवन के गुणात्मक विकास के लिए सब कर रहे हैं? जब तक ये बात नहीं समझेंगे तब तक सच्चे अर्थों में कल्याण सम्भव नहीं है। और ये सब जिनेन्द्र भगवान के दर्शन पूजन से ही प्राप्त होता है।
Leave a Reply