कहा गया है कि ‘भगवान की भक्ति, पूजा आदि निष्काम भाव से करना चाहिए’, लेकिन मैं इन्हें मोक्ष की कामना से करती हूँ तो क्या यह गलत है? यदि हम यह कामना करें कि हमारी भक्ति, जाप से हमारे माता-पिता को फल मिले, वे मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हों तो क्या उन्हें मेरी इस कामना का फल मिलेगा? ऐसा करना भी क्या सकाम भक्ति के अन्तर्गत आयेगा?
निश्चित ही भगवान की भक्ति निष्काम करना चाहिए। निष्काम भक्ति उत्कृष्ट भक्ति होती है। लेकिन सकाम भक्ति भी गृहस्थों के द्वारा की जाती है। वे प्रशस्त बातें पूछते हैं और प्रशस्त बातें पूछने में कोई बुराई नहीं है। ये प्रशस्त कामना है। हालाँकि, ये मानकर चलना कि जब तक तुम्हारे भीतर मोक्ष की कामना होगी, आपको मोक्ष नहीं मिलेगा। भगवान से माँगो मत; भगवान से माँगो तो यही माँगो कि ‘भगवान आप हमें अपनी भक्ति दे दो, हमारा सारा काम हो जायेगा।’ आचार्यों ने भी भगवान से भक्ति माँगी। आचार्य पूज्यपाद जैन जगत के एक महान आचार्य हैं। उन्होंने भगवान की खूब भक्ति की और भक्ति करते-करते एक दिन भगवान से उन्होंने कहा कि ‘मैंने जब से होश संभाला आपकी भक्ति की और आज मैं उसका फल चाहता हूँ।’ आप भी भक्ति करते हो, फल चाहते हो? क्या फल चाहोगे? सबके मन में अलग-अलग भावना रहती हैं। भगवान ने कहा- बोलो, क्या फल चाहते हो? ‘मैं उस भक्ति के बदले इतना ही चाहता हूँ कि, जब मेरे प्राण कंठ से निकले तो मेरा कंठ आपका नाम लेते हुए अवरुद्ध न हो। मैं आखिरी क्षणों तक आपका नाम लेना चाहता हूँ।’ ये भक्ति का एक रूप है। उसमें कोई बुराई नहीं।
अगर आप अपने माँ के विषय में या अन्य के विषय में सोचते हैं तो ये दूसरों के लिये positive wave (सकारात्मक तरंगें) प्रक्षेपित होती हैं और वह उनके जीवन में कुछ अंशों में परिवर्तन ला सकती है।
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