पंचकल्याणक का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है?
भगवान के पाँच कल्याणक गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष को निमित्त बनाकर पंचकल्याणक महोत्सव मनाये जाते हैं। जो पंचकल्याणक में शामिल हो जाता है उसका कल्याणक निश्चित हो जाता है ऐसा शास्त्रों का विधान है। तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों में शामिल होना सातिशय पुण्य के बन्ध का कारण बताया है।
वे बिरले भाग्यशाली जीव होते हैं जिन्हें अपने जीते-जी साक्षात् तीर्थंकरों के पाँचों कल्याणक देखने का सौभाग्य मिलता है। लेकिन ये आचार्यों की कृपा है कि पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के निमित्त से हम पाँच दिनों में पाँचों कल्याणक देख लेते हैं। ये वही देख सकता है जो भगवान से आठ वर्ष बड़ा हो, गर्भ में आने से पहले आठ साल का हो गया हो और मोक्ष जाने तक जिंदा रहे और जहाँ-जहाँ भगवान जायें वहाँ-वहाँ घूमते रहे तो पाँचों कल्याणक देख सके। ऐसा असम्भव तो नहीं पर दुर्लभ जरूर है। पंचकल्याणक के द्वारा पाँचों कल्याणक देख लेते हैं और पंचकल्याणक के द्वारा प्रतिष्ठा विधि सम्पन्न होती है। प्रतिष्ठा विधि सम्पन्न होने के बाद भगवान बनाते हैं।
अन्य पूजाओं में और पंचकल्याणक पूजा में अन्तर है। अन्य पूजाओं में बने-बनाये भगवान की पूजा होती है और पंचकल्याणक एक ऐसी पूजा है जिसमें अपनी पूजा से पाषाण से भगवान बनाया जाता है। तो आपने पंचकल्याणक की पूजा की और पाषाण से भगवान बनाया तो ये पाषाण से भगवान तक की यात्रा द्वारा भगवान की प्रतिष्ठा एक बार कर दी। उस प्रतिष्ठा के उपरान्त उस श्रीजी के माध्यम से जितने भी लोग पूजा अर्चा करेंगे, धर्म लाभ, पुण्य लाभ, सम्यक्त्व लाभ लेंगें उसका श्रेय उसको मिलेगा जिसने उस पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में अपनी सहभागिता दी। तो ये पुण्य सातिशय पुण्य है और भव को समाप्त करने वाला पुण्य है। जो पंचकल्याणक करता और कराता है, तो ये तय मानना कि उसका कल्याण बहुत जल्दी हो जाता है।
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