शंका
हम लोगों का पाप की तरफ आकर्षण ज्यादा और पुण्य की तरफ कम क्यों होता है?
समाधान
ये हमारा मन है और मन की एक विशेषता है कि वह नीचे की ओर लुढ़कता है। मन को पानी की तरह कहा गया है। पानी नीचे की ओर बहता है और नीचे की ओर बहने के लिए कुछ भी नहीं करना पड़ता है। केवल ढोलना पड़ता है, पानी अपने आप बह जाता है। पर पानी को ऊपर ले जाने के लिए मोटर लगानी पड़ती है क्योंकि अनादि के संस्कार कुछ ऐसे हैं, जो अशुभ की ओर हमारे मन को बड़ी सहजता के साथ ढकेलते हैं। शुभ में मन को लगाना पड़ता है और अशुभ में वह २४ घंटे लगा ही रहता है। इसलिए अपने मन को अशुभ से हटाकर शुभ में लगाना, एक बहुत बड़ा पुरूषार्थ है। इसके लिए धार्मिक समागम, स्वाध्याय, सम्यक चिंतन, बहुत बड़े निमित्त हैं, जो हमें पाप से बचाते हैं और परमार्थ में लगाते हैं।
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