माँ-बाप के कर्मों का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है? और कर्म सिद्धान्त इस बारे में क्या सोचता है?
शास्त्र में एक शब्द आता है दायभाग। दायभाग क्या होता है? एक बच्चे ने किसी अमीर के घर में जन्म लिया, किसी पुण्यशाली व्यक्ति के घर में जन्म लिया; वो बिना पुरुषार्थ के करोड़पति हो गया। ये करोड़पतित्व उसे दायभाग से मिला, माँ-बाप के पुण्य से मिला। एक बच्चा अपने पुण्य की क्षीणता से एक भिखारी के घर में जन्म लेता तो दायभाग से अपने माँ-बाप का भिखारीपना उसके हिस्से में मिल गया। ये एक समीकरण है। माँ-बाप का पुण्य प्रबल होता है, तो बच्चे के लिए उनकी छत्रछाया जीवन के अन्त तक बनी रहती है।
चक्रवर्ती पुण्यशाली जीव होता है और उसकी सन्तान या उसके वंश पर कोई आँच नहीं आती है क्योंकि ये चक्रवर्ती का पुण्य है। चक्रवर्ती का पुण्य इतना प्रगाढ़ रहता है कि उसके रहते हुए उसका सारा वंश सम्भला रहता है। माँ-बाप से पुत्र को, सन्तान के वंश को मिले हुए संरक्षण का उदाहरण है। लेकिन कभी-कभी हम देखते हैं कि साधारण परिवार में ऐसे प्रतिभा सम्पन्न बच्चे उत्पन्न हो जाते हैं, जो अपनी कार्य कुशलता के बल पर असाधारण ऊँचाई को प्राप्त कर लेते हैं, जैसे- अब्दुल कलाम साहब। ए.पी.जे. कलाम-एक मछुआरे के घर में जन्म लेने वाले व्यक्ति ने भारत के सर्वोच्च पद को प्राप्त कर लिया, राष्ट्रपति पद को प्राप्त किया। उस बच्चे से उनके माँ-बाप का नाम रोशन हुआ। पुत्र से भी माँ-बाप का नाम रोशन होता है।
मैं तो आपसे इतना ही कहना चाहता हूँ कि माँ-बाप का कर्म है सो है ही उसको बदला नहीं जा सकता। जीवन में सब चीजें पसन्द कर के पायी जा सकती हैं। लेकिन माँ-बाप को पसन्द कर के नहीं पाया जाता वो तो जैसे मिले हैं वैसे ही पसन्द करना होता है। जो माँ-बाप तुम्हें मिले, सो मिले! पर उन माँ-बाप की छत्र छाया में जो तुम्हें मिला है, उसे बढ़ाओ। अगर नहीं मिला है, तो अपने पुरूषार्थ के बल पर कुछ ऐसा करो कि तुम्हारे माँ-बाप से लोग ये बात पूछने के लिए लालायित हो उठे कि किस पुण्य के योग से ऐसी सन्तान प्राप्त करने का योग प्राप्त किया? अच्छी सन्तान के लिए ये सबसे अच्छी बात है। मैं समझता हूँ कि आपके प्रश्न का आशय clear हो गया।
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