कुछ लोगों का कहना है कि मुनि के द्वारा गौशाला खुलवाना उचित नहीं है यह कहाँ तक सही है?
मुनि के द्वारा क्या उचित है और क्या नहीं, ये मुनि ही जानता है गृहस्थों को इस पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। गौशाला जीव दया का एक पवित्र अनुष्ठान है और प्राणी रक्षा का उपदेश देना तो मुनियों का कर्तव्य है। आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं,
जीवानां रखनं धम्मो
दया से विशुद्ध परिणाम का नाम धर्म है। जीवों की रक्षा करने का नाम धर्म है, तो जब धर्म की इतनी महिमा बताई गई है और गृहस्थों के लिए पुण्य के कार्य करने हेतु प्रेरित किया गया है। आगम में प्राणी रक्षा की बात तो की ही गई है, प्राणी रक्षा के साथ गौ सेवा की बात भी बहुत प्रमुखता से दी गई है। एक दिन गुरू देव ने कहा था कि प्रायश्चित ग्रंथों में कुछ ऐसे भी उल्लेख मिलते हैं कि गृहस्थों के द्वारा कुछ बड़े पाप होने पर उनसे गौदान कराया गया। गौ रक्षा का क्या फल मिलता है? आचार्य वीरसेन महाराज ने तो स्पष्ट शब्दों में लिखा है “या श्री सा गौ” जो कोई भी लक्ष्मी है वह गाय है, यह धवला का उल्लेख है; पर गौशाला और गौ रक्षा का क्या प्रभाव पड़ता है? मैं कहूँगा कि डॉ. सुहास शाह इस क्षेत्र में काफी काम कर रहे हैं दयोदय से ये जुड़े हुए हैं। विदिशा में जो अभी विधान हुआ गुरूदेव के सानिध्य में उसके ईशान इन्द्र भी ये थे और इनका बहुत बड़ा कन्ट्रीब्यूशन (योगदान) था। आप इन जैसे एक चिकित्सक के मुख से सुनिए कि जीव दया का क्या परिणाम आता है? मैं चाहूँगा कि डॉ. साहब खुद अपने मुख से यह बात कहें और बहुत ध्यान से आप लोग सुनें।
प्रश्नकर्ता:
मैं एक घटना आपको बता रहा हूँ। मैं राजस्थान के बांसवाड़ा शहर में पूर्णमति माताजी के दर्शन के लिए गया था और वहाँ एक मनुष्य मुझे मिला और जब उसे पता चला कि मैं बम्बई का ऑर्थोपेडिक सर्जन हूँ और उनके बेटे को पैरालिसिस हुआ था। हाथ और पैर दोनों पैरालाइज्ड थे। अपने घर में गिर कर सर्वाइकल स्पाइन में फ्रेक्चर और डिसलोकेशन होने से उसकी पूरी ताकत चली गई थी और वो बोल भी नहीं पाता था। इतनी खराब कंडीशन थी कि उसकी लार भी टपक रही थी और वह अपाहिज जैसा हो गया था। सब प्रकार की दवा करने के बाद उन्होंने पूछा कि कोई फायदा नहीं हो रहा है। मैंने उसका MRI देखा, सब देखने के बाद मैंने उससे कहा कि ‘मेडीकल साइंस में तो इसका कोई इलाज नहीं है, एक बार CHORD यहाँ से कट जाए तो वापस ताकत आना असम्भव है और उस बच्चे को कुछ होना सम्भव नहीं है’। तभी मेरे मन में एक भाव आया कि इस बच्चे के लिए कुछ ऐसी सुविधा हो सकती है जिससे इसमें चमत्कार हो जाय तो मैंने उनसे कहा कि आप अपने बेटे के नाम से अभी के अभी दस गायों का दान करा दीजिए तो बोले ‘उससे क्या होगा?’ मैंने कहा-‘आप करिए तो सही’! उन्होंने तुरन्त के तुरन्त मेरे फोन से बाजार में से कसाइयों से दस गायों को खरीदकर गौशाला में शिफ्ट करने का आदेश दिया। उस घटना को मैं भूल ही गया था और मैं बम्बई आ गया। एक महीने के बाद उनका फोन आया, वो रो रहे थे फोन पर और कह रहे थे कि डाक्टर साहब मेरा बेटा णमो सिद्धाणं बोलने लगा है। ये प्रयोग मैंने कितने ही patients में किया। ये बहुत चमत्कार की चीज है जो आगम में भी लिखी हुई है।
मैं नियम सागर महाराज जी के साथ में भी था तो महाराज जी ने मुझसे कहा कि ‘आप पूना के बगल में एक सन्त तुकाराम गौशाला है वहाँ जाकर आइए।’ मैं गया वहाँ रूपेश नाम का लड़का है जिसकी उम्र बाइस साल है उसने अपनी पूरी जिन्दगी गौशाला के लिए दे दी है उसने एक अभिनव प्रयोग किया। वह देखकर मैं दंग रह गया। वहाँ वह ऐसे लोगों को उठाकर लाया था कि जो रास्ते में ऐसे ही पड़े रहते हैं जिनको कोई होश नहीं है। मैं कहाँ से हूँ, क्या हूँ, ऐसा कहने वाले लोग हैं वहाँ जिन्हें लोग पागल कहते हैं, पत्थर मारते हैं, ऐसे लोगों को वह उठाकर लाता है, उनकी सेवा करता है और उनके द्वारा गौशाला चलाकर गायों की सेवा कराता है। उसने कहा कि ये सभी लोग चन्द महीने में अच्छे हो जाते हैं और अपने घर का पता लेकर घर चले जाते हैं। ऐसे दुर्धर आचार ऐसी दुर्धर बीमारी गौदान से, गौ सेवा से दूर होती है और गाय से निकली हुई हर चीज मनुष्य के लिए उपयोगी है, तो हमें गौदान के लिए और गौसेवा के लिए सदैव तत्पर होना चाहिए।
हमारे जैन समाज का एक-एक व्यक्ति एक गाय को अभयदान दे तो मुझे नहीं लगता कि कसाइयों के पास कोई गाय खड़ी रहेगी। इतना महत्त्वपूर्ण कार्य और अपने घर में भी लगाएँ और अपने ऑफिस में भी जीव रक्षा का बॉक्स लगाएँ और अपने आने वाले ग्राहक को उत्साहित करें कि जीव रक्षा के बाक्स में कुछ दान करें। मेरे हॉस्पिटल में मैंने लगवाया है और मैं यहाँ गर्व से कह सकता हूँ कि जो भी जैन मरीज आता है उससे पैसा नहीं लेता मैं दान करवाता हूँ कि गौशाला के लिए दान कीजिए, गौसेवा के लिए दान कीजिए और उसका पुण्य इतना प्रबल होता है कि शरीर और अपने जीवन में उसका सकारात्मक प्रभाव दिखाई देता है।
महाराज जी:- मैं कहना चाहता हूँ कि जब भी आपके जीवन में कोई मांगलिक प्रसंग आए, जीव दया के लिए अभयदान जरूर निकालें। हर व्यक्ति साल में कम से कम एक प्राणी को तो अभयदान देने का पुण्य ले कि एक गाय को हम कम से कम साल में बचाएँ। देश में एक करोड़ जैनी हैं केवल एक गाय को बचाने का प्रण लेते हैं तो साल में एक गाय बचेगी और एक करोड़ गौवंश बचता है, तो भारत की समृद्धि आसमान पर पहुँच जाएगी। उसमें सोचने की बात नहीं है। डॉ. सुहास साहब ने अभी-अभी संकल्प व्यक्त किया कि साल में एक हजार गायों का संरक्षण मैं करूँगा। इनकी उदारता की बात मैं क्या कहूं? ये दोनों इतने विरक्तचित्त व्यक्ति हैं कि इनका हर क्षण केवल परमार्थ के कार्य के लिए बीतता है। लोगों को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। आप सब भी अपने अपने मन में संकल्प लें और ये पैसा दयोदय महासंघ जो १३७ गौशालाओं का महासंघ है उनमें भेजेंगे तो आपकी एक-एक पाई का सदुपयोग होगा। वो महासंघ हर उस गौशाला को पैसा देता है जहाँ उसकी आवश्यकता है। जिस गौशाला को जितनी आवश्यकता हो वहाँ उनको उतने रूपयों की funding आज भी दयोदय महासंघ साल में केवल जीव दया के लिए देता है। अभी डॉक्टर साहब ने मुझे बताया कि विदिशा में होने वाले विधान की बचत राशि ढाई करोड़ रूपये दयोदय महासंघ के लिए है, तो ये जीवदया का कार्य है और ऐसे कार्य में समाज को आगे आना चाहिए और ये बहुत पुनीत कार्य है देश का, धर्म का, संस्कृति का और व्यक्ति का उत्थान ऐसे पुनीत कार्यों से निश्चित होगा। जन्मदिन में, घर में कोई बच्चा हो तब, कोई विवाह आदि हो तो या और किसी की मृत्यु अगर हो जाए तो इसमें तो दान निकालने की परम्परा है, उस समय अवश्य दान दें। दयोदय महासंघ की जो पट्टी है उस पर फोन नंबर है, वह पारस चैनल पर दिन भर चलती है।
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