सूतक-पातक में बहुत परेशानी होती है। कोई बोलता है कि जाप चाँदी-सोने की माला से फेर लो तो उसमें दोष नहीं लगता है। कोई कहता है कि बहन-बेटी (कुँआरी हो या शादी शुदा) को सूतक-पातक नहीं लगता है। इसका खुलासा कीजिए। और एक मौत में दो मौत हो जाती है तब क्या नियम है?
सूतक-पातक के विषय में बहुत सारी भ्रांतियाँ है। एक बार आचार्य गुरूदेव के सामने जब ऐसी बात आई तो कहा कि ये सामाजिक व्यवस्था है। आत्मा का इनसे कोई सम्बन्ध नहीं है। ये समाज की रीति है। झगड़े में मत पड़ो। जहाँ जैसा चल रहा है वैसा चलने दो।
अब रहा सवाल शास्त्रीय विधान का, तो विधान ये है कि सूतक-पातक में जिनका रक्त सम्बन्ध है उनको ही सूतक लगता है। लेकिन कन्याओं को सूतक-पातक नहीं होता और भेद भी किया है कि पुत्र की मृत्यु का सूतक अधिक है और कन्या की मृत्यु का सूतक केवल तीन दिन का है। चाहे वह कुँआरी हो या विवाहित हो। क्योंकि बेटी हमेशा पराई होती है। एक सूतक के अन्दर यदि कोई दूसरा सूतक हुआ तो पूर्व के सूतक में ही वह सूतक मान्य होता है। उसके लिए नया सूतक नहीं होता है। नहीं तो कई-कई बार दिक्कत हो जाती है।
हम कलकत्ता में थे, एक का तीया हुआ और दूसरे दिन उसी घर में दूसरी मृत्यु हो गई। वो तीया करके घर पहुंचे नहीं फिर दूसरे तीया की बात आ गई। अब दोनों के लिए कैसे करें? ऐसा कहते है कि सूतक के काल में यदि सूतक हो तो पूर्व का सूतक मान्य होता है, तो इसको उसी तरीके से देखना चाहिए।
जहाँ तक सवाल है माला आदि फेरने का, तो सोने को छोड़कर अन्य किसी चीज की माला सूतक के काल में प्रयोग में नहीं लेनी चाहिए। स्वर्ण धातु एक ऐसी धातु मानी जाती है जो कभी मलिन नहीं होती है। ऐसा कहते है कि सोने के पानी से नहाने से अशुद्ध व्यक्ति भी शुद्ध हो जाता है।
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