नवजात शिशु सपने में हंसते हैं या रोते हैं। वो ऐसा क्यों करते हैं? उसके पीछे क्या कोई scientific reason (वैज्ञानिक कारण) है?
बच्चों में पूर्व जन्म के कुछ संस्कार होते हैं और यह उन संस्कारों की अभिव्यक्ति होती है।
ऐसा कहते हैं कि जन्म के समय यदि कोई बच्चा रोता नहीं है, तो वो शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होता है, ऐसा बोलते हैं। बच्चा रोता क्यों है? मैंने बहुत पहले एक लेख पढ़ा कि बच्चा रोता क्यों है? लेख के सिद्धान्त पर मत जाना पर मुझे उसका कथ्य बहुत ही अच्छा लगा। उसमें लिखा था कि बच्चा जब माँ के पेट में समाता है, तो माँ के पेट की जो व्यथा होती है, गर्भ में रहकर संकुचित रहने से तकलीफ होती है वो और उसे अपने अतीत जन्मों की कुछ बातें याद आती हैं, तो वो अन्दर की वेदना और अतीत जन्मों की यादें, इन दोनों के बीच में तालमेल नहीं बना पाता इसलिए रोता है। माँ के पेट में तो रो रहा है। उसको छोड़कर आया है। अब यहाँ आना है, तो रोएगा, तो ये कहीं न कहीं उसके संस्कार होते होंगे।
आगम में ऐसा बताया कि एक जीव जब एक गति से दूसरी गति में जाता है, नए शरीर की निर्माण प्रक्रिया को प्रारंभ करना शुरू करता है तो पुद्गल परमाणुओं का संचय करना शुरू करता है। पुद्गल परमाणुओं के संचय के क्रम में अगर कोई मनुष्य या तिर्यंच, देव गति को जाता है, तो बहुत तेजी से परमाणुओं को ग्रहण करता है। जैसे-भूखे को रसगुल्ला मिल जाए; और कोई मनुष्य या तिर्यंच मरकर नरक में जाता है, तो बहुत धीमी गति से पुद्गलों को ग्रहण करता है क्योकि वहाँ सब नीरस चीजें हैं। देव जब मरकर के मनुष्य होता है या तिर्यंच होता है, तो वो भी बहुत मंद गति से पुद्गलों को ग्रहण करता है; यानि वो कुछ पुराने संस्कार लेकर आया है। ये मैं माँ के पेट में आने की बात कर रहा हूँ, प्रथम अंर्तमुहूर्त की। जब वो पर्याप्तियाँ ग्रहण करता है, तो निश्चित माँ के पेट में और माँ के पेट से बाहर निकलने के बाद तक बच्चे के मन में कुछ काल तक अतीत की स्मृतियाँ हो सकती हैं। जैसे-जैसे वह होश संभालता है, भूलने लगता है इसमें कोई बुराई नहीं है।
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