शंका
हमारी पहचान ‘जैन’ है, क्या इतना काफी नहीं है? क्या उसके आगे श्वेतांबर-दिगंबर लगाना जरूरी है?
समाधान
हम जैन हैं, ये तो पर्याप्त है किन्तु पहले हम जैन तो हो जाएँ। पहले अपने ‘आप’ में जैन लगाएँ; और उसके बाद जो जैसी व्यवस्थाएँ हैं, उसको लगाने में अपनी पहचान बनती है, उसमें कोई बुराई नहीं है।
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