मुझे सभी साधु सन्तों की जाँच के लिए जाना पड़ता है। वो टेस्ट भी नहीं कराते हैं, कहते हैं कि हमें आपकी दवा भी नहीं चाहिए। एक माताजी हैं जिनको पिछले पाँच साल से उल्टियाँ हो रही हैं हमने कहा कि टेस्ट करा लो। माताजी बोलीं- नहीं कराएँगे। इससे निजात कैसे हो।
ये सारी व्यवस्थाएँ आचार्यों के अधिकार क्षेत्र में आती हैं इसलिए मैं इस विषय में कुछ भी नहीं कह सकता। किसी भी साधक को कोई भी बीमारी आदि होती है, विशिष्ट बीमारियाँ होती हैं, तब उन्हें अपने आचार्य से आज्ञा और मार्गदर्शन लेना होता है। उनकी जो भी चिकित्सा होती है वो उनके ही हिसाब से होती हैं और आचार्य विधिसम्मत चिकित्सा के लिए ही अनुमोदना देते हैं।
रहा सवाल बहुत सारी जाँचों का। तो मेरी ऐसी अवधारणा है आप खुद मेरी बात से संभवतः सहमत होंगे कि जो पैथोलॉजी की जाँच या अन्य प्रकार से analysis (विश्लेषण) आप लोग कराते हैं, उससे आप लोगों का clinical experience (अनुभव) ज़्यादा अच्छा होता है। बहुत सारी चीजें एक सी हैं जिनमें जाँच आदि के पचड़े (झंझट) में पड़े बिना अपने क्लिनिकल एक्सपीरियंस से भी ठीक किया जा सकता है। मैं आपसे ये कहूँ कि साधु की चिकित्सा साधु के तरीके से करो तो मामला ठीक हो जाएगा। उसे एक सामान्य मरीज मानकर के मत करना। एक संयमी साधक मानकर उन की चिकित्सा करो। इस तरीके से करो कि उन्हें कोई कठिनाई भी न हो और काम हो जाए। हमारे बाबाजी का हार्निया का आपरेशन हुआ, इनकी दस प्रतिमा हैं। उस समय तो सात प्रतिमा थीं और ये अपनी धुन के पक्के। इन्होंने डॉक्टर को कह दिया कि मैं ऐनेस्थीसिया नहीं लूँगा, इंजेक्शन नहीं लगवाऊँगा, और कोई दवाई नहीं लूँगा। एन्टीबॉयोटिक भी नहीं लिया। झारखण्ड, राँची के एक वरिष्ठतम सर्जन ने इनका ऑपरेशन किया, उन्होंने कहा- मैं आपके व्रतों को कोई दोष नहीं लगने दूँगा। बिना किसी इंजेक्शन और दवाई के बाबा जी की हार्निया का ऑपरेशन success (सफल) हो गया और वो ठीक हो गए मनोबल से बड़ा और कोई इलाज नहीं है।
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