दान गुप्त रूप से करें या नाम के साथ?

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शंका

नाम बोलकर दान देने में और गुप्त दान देने में- इनमें से किसमें सातिशय पुण्य का बन्ध होता है?

समाधान

दान देने वाले का नाम बोलना चाहिए लेकिन नाम बुलवाने के लिए दान नहीं करना चाहिए। मतलब? ‘महाराज जी! ये तो उल्टा हो गया।’ मैं इसलिए कह रहा हूँ कि यदि कोई दान देता है और आप उसका नाम बोलते हैं तो दूसरों को प्रेरणा मिलती है, दूसरे उसकी अनुमोदना करते हैं और अनुमोदना करके पुण्य ही प्राप्त करते हैं, इसलिए दान बोलने वाले का नाम तो बोलना ही चाहिए। 

एक व्यक्ति ने दान दिया और उसका नाम बोला गया तो उससे अनेक लोगों ने प्रेरणा पाई, उस प्रेरणा का फल सबको मिलता है। इसलिए दान बोलने वाले का नाम बोलना चाहिए। लेकिन, ‘मेरा नाम बोला जाए, नाम बोला जाए’- इस भाव से दान मत दो। हमने दान किया है अपने कर्तव्य की पूर्ति के लिए, नाम बोल दिया तो ठीक और नहीं बोल दिया तो ठीक। ‘मैंने कोई एहसान नहीं किया है, मैंने तो अपने कल्याण का एक उपक्रम किया है’- ये बोलें। अगर कोई आपका नाम बोलता है, तो आपत्ति मत करो और कहीं से आपका नाम चूक जाता है, तो ऐतराज मत करो। दोनों चीजें अपने मन में होनी चाहिए। इसलिए दानी की सदैव प्रशंसा होनी चाहिए, दानी को मान मिलना चाहिए; पर मान पाने के लिए कभी दान नहीं करना चाहिए।

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