‘चमत्कार को नमस्कार’ के बारे में थोड़ा दिशा निर्देश देने की कृपा करें? कई लोग भगवान के सामने, चन्द्रप्रभु भगवान या पार्श्वनाथ भगवान के सामने, दीपक लगाते हैं। मैं भी बहुत ही असमंजस में पड़ जाती हूँ कि मैं कहाँ लगाऊँ?
मैं कई बार ऐसा बोल चुका हूँ कि ‘चमत्कार को नमस्कार’ करने की आस्था बहुत कमजोर है। नमस्कार से चमत्कार करने वाले लोगों की आस्था मजबूत है। वस्तुतः नमस्कार में चमत्कार होता है। अज्ञानी चमत्कार को नमस्कार करता है और ज्ञानी नमस्कार को चमत्कार करता है।
जहाँ तक सवाल है भगवान की पूजा आराधना का, तो ये हमारी श्रद्धा से अनुगत है। हम जब श्रद्धा से भरकर भगवान की पूजा आराधना करते हैं तो हमें उसका वास्तविक परिणाम मिलता है। कुछ लोग हैं जो केवल ऊपरी चमत्कारों से आकर्षित होकर भगवान को पूजते हैं। सन्त कहते हैं, ये बाहर का चमत्कार तो बहुत स्थूल है जीवन का परिवर्तन ही वास्तविक चमत्कार है। हमें उस तरफ ध्यान देना चाहिए।
पूजा उपासना का लक्ष्य भौतिक न होकर आध्यात्मिक रखें। जो भौतिक उद्देश्य से प्रेरित होकर भगवान की पूजा-आराधना करते हैं उनकी आस्था अक्सर डगमगाती रहती है। लेकिन जो अपने जीवन के गुणात्मक परिवर्तन का लक्ष्य लेकर आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भगवान की पूजा अर्चना करते हैं उनकी पूजा आराधना बहुत सार्थक होती है, उनके जीवन में परिवर्तन आता है। मैं सबसे ये कहना चाहूँगा कि पूजा परिवर्तन ही सबसे बड़ा चमत्कार है और जो भी काम आप करें आस्था से भरकर करें।
आपने पूछा है कोई पार्श्वनाथ कोई आदिनाथ कोई चन्द्रप्रभु के आगे दीप जलाते हैं, मैं किसके आगे दीप जलाऊँ? मैं तो आपको कहूँगा आप किसी के आगे दीप मत जलाएँ, अपने मन में दीप जलाएँ। सब जगह रोशनी फैलाने में समर्थ हो जाओगे।
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