कायोत्सर्ग का शाब्दिक अर्थ क्या है? कायोत्सर्ग कैसे करना चाहिए और कब करना चाहिए?
कायोत्सर्ग का मतलब होता है काय का उत्सर्ग, शरीर का उत्सर्ग। यानी शरीर को तो त्याग नहीं सकते पर शरीर के प्रति ममत्व के परित्याग का नाम कायोत्सर्ग है। तो कायोत्सर्ग कई तरीके से होते हैं। २७ उच्छवास का कायोत्सर्ग होता है, ५४ उच्छवास का कायोत्सर्ग होता है, ३६ उच्छवास का कायोत्सर्ग होता है, ३०० उच्छवास का कायोत्सर्ग होता है, ४०० का होता है, ५०० का होता है; तो अलग-अलग होता है। तो जब हम नौ बार नमोकार मन्त्र पढ़ते हैं, तो २७ उच्छवास के लिए कायोत्सर्ग होता है। जिस समय कायोत्सर्ग करते हैं तो हमें सावधान की मुद्रा (attention) में होना चाहिए। कई लोग कायोत्सर्ग करते हैं गर्दन लटकाए होते हैं और उसमें भी अपने अंगों को चलाते रहते हैं तो ये कायोत्सर्ग के अतिचार हैं। एकदम सावधान (attention) मुद्रा में, शरीर से मोह त्याग कर, एकदम स्थित से जो कायोत्सर्ग करते हैं वही सच्चा कायोत्सर्ग कहलाता है।
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