मैं मन्दिर जाती हूँ तो काफी लोग मुझे बोलते हैं कि ‘तुम अपनी लाइफ में enjoy करो, तुम्हारी age नहीं अभी धर्म करने की। अगर धर्म करना है, तो बुढ़ापे में करो।’ मैं उन लोगों को कैसे समझाऊँ धर्म बुढ़ापे में नहीं जवानी में किया जाता है?
उनसे पूछो कि enjoyment किसको कहते हैं, क्या परिभाषा है? शराब और शबाब में जीने का नाम enjoyment है या मन को सदाबहार प्रसन्न रखने का नाम enjoyment है। उनसे पूछो ‘enjoy आप कर रहे हो या मैं कर रही हूँ।’ उनसे कहो ‘तुम्हारे और हमारे तरीके में अन्तर है तुम जिसको enjoyment कहते हो, हम समझते हैं वो wastage है और हम जिसको enjoy करते हैं वह हमारे लिए आनन्द है। जिस समय हम भगवान के दर्शन करते, पूजन करते, धर्म का कार्य करते हैं उस घड़ी में जो हमारे अन्दर आन्तरिक सन्तुष्टि होती है वो तुम्हारे enjoyment से कुछ नहीं होती। लोग पार्टियों के दौर में जाते हैं, शराब-शबाब के चक्कर में रहते हैं, घंटा- दो घंटा- ३ घंटा रहते हैं, बाहर आने के बाद क्या होता है? टेंशन हावी हो जाता है। होता है कि नहीं होता? तो उस एँजोयमेंट से क्या होगा? मन बहलेगा, शांति नहीं मिलेगी। भगवान के चरणों में आओगे तो मन बहलेगा नहीं, मन बदल जाएगा, परम शांति हो जाएगी। जीवन में शांति चाहिए, मन को बहलाओ मत, मन को बदलो, हमने मन को बदल दिया। तुम्हारा एनजॉय करने का तरीका अलग, हमारा एनजॉय करने का तरीका अलग, तुम जिसमें एनजॉय मानते हो हम उसे ‘शहद लपेटी तलवार’ मानते हैं- चाटते समय मीठा लगता है, बाद में जीभ कटती है और हम जिसमें एनजॉय मानते हैं वो मिश्री की डली होती है- हमेशा मुँह मीठा ही मीठा होता है। हर पल मीठा होता है, अनुभव करने की कोशिश करो।
Enjoyment किसको बोलते हैं? हमसे एक बार एक व्यक्ति ने सवाल किया, आज से लगभग २५ साल पहले, कि ‘महाराज! आप साधु क्यों बन गए?’ मेरे साथ खेला-पढ़ा था, इस मार्ग में निकलने के ७ बरस बाद मेरे पास आया और मुझसे कहा ‘साधु क्यों बन गए?’ “क्या मतलब?” ‘ये तो आप जीवन बर्बाद कर रहे हो, आप को इंजॉय करना चाहिए।’ “मैं जीवन का एन्जॉय ही तो कर रहा हूँ।” ‘आप इतने कष्ट में, इतने परेशानी में फंसे हैं, इतना कठिन मार्ग, एक टाइम खाना, केश-लोंच करना, पैदल चलना।’ मैंने कहा -“भैया! तुम्हें मेरा एक टाइम खाना दिख रहा है, केश-लोंच दिख रहा है, पैदल चलना दिख रहा है, सर्दी-गर्मी की बाधायें दिख रही हैं, तुझे मेरे मन की मस्ती दिखी? मेरे भीतर देख! क्या देख रहे हो? किसी हारे-थके इंसान के पास बैठे हो या अपनी मस्ती में डूबे हुए किसी साधु के पास बैठे हो?” देख लो, तुम देखने की कोशिश करो। मेरे अन्दर जो मस्ती है तुम्हारे अन्दर है क्या? तुम सब साधन छोड़ कर भी वो नहीं पा पाए जो मैं सब छोड़ करके पा रहा हूँ। आनन्द कहाँ है यह देखो! Enjoyment का अपना-अपना तरीका है। अच्छे तरीके से लाइफ को एँजॉय करना चाहते हो तो अध्यात्म से जुड़ो, धर्म से जुड़ो, वही वास्तविक enjoyment है, बाकी तो केवल बहाना है।
एक बच्चा है जो माँ का दूध पीकर के अपने जीवन को तृप्त करता है, शरीर को तृप्त करता है और एक बच्चे को केवल निप्पल पकड़ा दिया जाता है। माना कि माँ का दूध हर वक्त नहीं मिलता, निप्पल हर वक्त मिल जाता है लेकिन हर वक्त के निप्पल से शरीर को कोई पुष्टि नहीं मिलती और माँ के दूध का एक पल भी जीवन को पुष्ट कर देता है। तुम्हारे जितने भी साधन हैं निप्पल की भांति हैं, जो वैसा ही थोथा enjoy करा रहे हैं; और हमारा धर्म है जो दूध की तरह है, एक पल दो तो जीवन निहाल हो जाए फिर कुछ करने और कहने की ज़रूरत ही न पड़े।
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