ट्रस्ट द्वारा पुण्यार्जक कर्मों का फल किसे जाता है?

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शंका

यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन काल में कमाये हुए अपने निजी धन से कोई ट्रस्ट बना देता है जिसमें किसी और का आर्थिक सहयोग नहीं है; और उसके माध्यम से असहाय लोगों की सहायता, शिक्षा, औषधि आदि परोपकारी कार्य होते रहें तो इसका फल ट्रस्ट बनाने वाले को जाएगा या उस ट्रस्ट के ट्रस्टीजनों को जाएगा?

समाधान

यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति का परित्याग करके ट्रस्ट बनाता है और पारमार्थिक उद्देश्यों की पूर्ति उस राशि से करने की व्यवस्था करता है, तो उसने अपने धन का स्वामित्त्व त्यागा है, ट्रस्ट लिए जो धन समर्पित किया वह धन समर्पित करने से पूर्व उसका था अब वो धन ट्रस्ट का हो गया और जैसे ही उसने ट्रस्ट के खाते में डाला, वह केवल उसका व्यवस्थापक बन गया इससे पूर्व वह मालिक था। ये त्याग है और इसका पुण्य ट्रस्ट बनाने वाले को निश्चित रूप से जायेगा। 

रहा सवाल उस ट्रस्ट का संचालन करने वाले ट्रस्टीगणों का, तो ट्रस्टीगणों को केवल संचालन का पुण्य आयेगा। जैसे एक आदमी ने मन्दिर बनाया उसका कितना पुण्य होगा? जब तक ये मन्दिर रहेगा तब तक पुण्य उसे मिलेगा। जितने लोग दर्शन, पूजन व वन्दन के लिए आयें ऐसा सातिशय पुण्य मन्दिर का निर्माण करते ही वह पा लिया और उस मन्दिर के रखरखाव के लिए जो ट्रस्ट को क्या पुण्य मिलेगा? केवल रख-रखाव का। और निर्माता को पुण्य किसका मिलेगा? पूरे निर्माण का। आपने ट्रस्ट बनाया आपके खाते में उसका पूरा पुण्य और जो उसका संचालन कर रहे हैं उसको केवल संचालन का पुण्य मिलेगा वो भी तब तक ईमानदारी से संचालन करें तब। अगर अपने ट्रस्ट के उद्देश्यों से भटक कर उसका सही उपयोग नहीं करते तो पाप कमाते हैं और उस ट्रस्ट की सम्पत्ति का खुद उपभोग कर लें तो महापाप कमाते हैं। 

पर एक सलाह मैं देता हूँ। बहुत सारे लोग अपनी संपत्ति का ट्रस्ट बनाकर इस तरह का कार्य करना चाहते हैं। पं. जगत मोहनलाल सिद्धान्त शास्त्री ने मुझे बड़े अनुभव की बात कही थी। उनके बच्चों ने चाहा था कि वो अपना एक ट्रस्ट बना दें तो काम हो जाये तो उन्होंने मना किया क्यों? बोले नहीं! वो कहते थे कि कभी भी यदि आप कोई ट्रस्ट बनाओ तो उसका संचालन अपनी सन्तान को मत दो। क्यों? उनकी बात बड़ी तार्किक थी। बोले कि ऐसा होता है कि जब कोई ट्रस्ट बना देता है और उसका संचालन उनके परिवार के लोगों के हाथ में रहता है, तो क्या हो जाता है? परिवार के लोग उसी पैसों से दान करते जाते हैं और अपना नाम कमाते रहते हैं। वो रोज जो कमा रहे हैं, अपनी earning (अपनी कमाई) से दान नहीं कर रहे हैं। तो तुमने अपना दान क्या किया? दूसरे ने जो दान दिया उसी में से निकाल दिया। तो जो तुम्हें पुण्य का लाभ मिलना चाहिए उससे वंचित रह जाते हो। यदि आप चाहते हो कि आपकी सन्तान पुण्य कमाती रहे तो अपने सन्तान के जिम्मे कोई ट्रस्ट मत छोड़ो। ट्रस्ट यदि बनाना है, तो समाज के जिम्मे करो। उसमें आपकी एकाध सन्तान रहे तो चलेगा वह उसकी मालिक न हो, समाज मालिक हो। 

एक बात मैं और बोलता हूँ कि पीढ़ियाँ चढ़ती और उतरती हैं, समाज हमेशा हरा-भरा रहता है। आपने तो आज की अपनी पुण्याई की स्थिति में ट्रस्ट बना दिया और अपने सन्तान के जिम्मे वह ट्रस्ट छोड़ दिया तो कल तुम्हारी पीढ़ी में कोई पुण्य क्षीण वाला प्राणी आ जाये तो उस संपत्ति का उपभोग कर सकता है। अपनी खराब नियत के कारण और पाप कमा सकता है। अगर अपनी पीढ़ियों को नरक जाने से बचाना चाहते हो, तो मैं कहूँगा कि ट्रस्ट बनाओ तो उसका प्रबंधन उनके हाथ में मत सौंपो। तब वो ठीक-ठाक चल पायेगा और सारे कार्य व्यवस्थित हो पायेंगे।

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