शंका
भाग्य और पुरुषार्थ में क्या अन्तर है? क्या पुरुषार्थ से हाथ की लकीरें बदल सकती हैं?
समाधान
विनोबा जी का लिखा हुआ ये मुझे बहुत प्रभावी लगा। उन्होंने लिखा कि ‘हम कोई अच्छा कार्य करें ये हमारा पुरुषार्थ है और दुनिया उसे अच्छा माने ये हमारा भाग्य है।’ हमें करना क्या चाहिए? जब भी हम कुछ करें तो हमें पुरुषार्थवादी होकर करना चाहिए और पर्याप्त पुरुषार्थ करने के बाद भी परिणाम सामने न आये तो उसे आप अपने भाग्य की परिणति मानकर स्वीकार कर लें।
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