तीर्थक्षेत्रों पर हर वेदी के भावपूर्ण दर्शन सम्भव नहीं, क्या करें?

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शंका

तीर्थों में हर दो-दो कदम पर वेदियाँ बनी होती हैं। मन्दिरों के दर्शन करने में धोंक देना और चावल चढ़ाने जैसी क्रिया की जाती है, किन्तु हर वेदी पर उतने भाव नहीं बनते। तो क्या एक वेदी पर भाव सहित बैठना उचित होता है या ज्यादा वेदियों के दर्शन करने से ज्यादा पुण्य का बन्ध होता है?

समाधान

तीर्थक्षेत्र में इतनी सारी वेदियाँ इसलिए बनाई जाती हैं कि आओ तो पूजन करो और दर्शन करो; इधर उधर घूमने के लिए शॉपिंग के समय लिये ही न बचे। 

आप लोग तीर्थ क्षेत्र में आते हो तो आपको तीर्थ क्षेत्र में आने के बाद भी शॉपिंग करना है। आपको घूमना फिरना है; तीर्थयात्रा में भी आप तीर्थ कहाँ कर पाते हो? एक वेदी होती तो एक वेदी में घंटा-आधा घंटा बैठ कर चले जाते। कितनी देर मन लगाते? अच्छा है कि इतने सारे मन्दिर हैं। जितने दिन आप नीचे रहते हो तो कम से कम एक दिन तो आपका नीचे की वन्दना में जाता है। इतने मन्दिर हैं, इतनी वेदियाँ हैं जिस वेदी में आपका मन लग गया तो आपका कर्म कट जायेगा। कोशिश करो, आप लोग एक वेदी पर बैठकर पूजा कर लेते हो पर अर्घ तो सब को चढ़ाते हो न? तो जहाँ आपका मन लगे वहाँ विशेष पूजा, पाठ, जाप आदि करो लेकिन बाकी की उपेक्षा मत करो। 

मन है, थक जाता है, पर अन्दर से उत्साह संचित करो – ‘मैं आया किस लिए हूँ, तीर्थ क्षेत्र में मेरे आने का मकसद क्या है? मैं आया हूँ तीर्थक्षेत्र में, इसलिए आया हूँ कि मुझे धर्म ध्यान करना है, अपने मन के प्रमाद को मुझे जीतना है। अब मैं अपने मन के प्रमाद को मन पर हावी नहीं होने दूँगा। नहीं-नहीं! एक मन्दिर के और दर्शन करो। चलो न क्या बात हो गई? ये दर्शन करके ही हम को चलना है।’ अपने मन को उत्साहित करोगे तो आनंद ही आनंद आयेगा।

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