आकुलता क्यों होती है? मन खुद को बार-बार क्यों आकुल कर देता है? ये संकल्प और विकल्प क्यों आते हैं?
आकुलता तब होती है जब हमारे मन के विरुद्ध कुछ घटता है और मन उसे पचा नहीं पाता। अभी आप को प्रश्न के लिए बुला लिया तो ठीक अगर प्रश्न के लिए नहीं बुलाते तो आकुलता हो जाती है। इस आकुलता से बचने का उपाय क्या है? अपने मन को साधना और ज्ञान के बल पर, वैराग्य के बल पर अपने अन्दर इस भावना को दृढ़ता पूर्वक स्थापित करना कि ‘संसार का समस्त परिणमन मेरे मनोनुकूल नहीं हो सकता है। संसार के परिणमन को मैं अपने अनुकूल बना सकता हूँ, पर सब मेरे मन का हो ये मेरे हाथ में नहीं है। अपने ज्ञान और विवेक के साथ अपने मन को बदलने की क्षमता अपने अन्दर आए तो आपकी आकुलता कुछ शांत होगी।
मोक्ष मार्ग कुछ नहीं, हमारी आकुलता के शमन का मार्ग है। अपनी आकुलता को जितना शान्त करोगे, आपकी आकुलताएँ जितनी सीमित होंगी आपका मोक्ष, आपका मोक्ष मार्ग उतना ही प्रशस्त होगा। ये सारा खेल मन का है मन को राजी करो और वस्तु के स्वरूप का विचार करो आकुलताएँ शान्त होंगी। संकल्प-विकल्प भी आकुलता का ही एक रूप है।
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