भगवान जी की प्रतिमा के पीछे आभामण्डल क्यों बना होता है?
भगवान के अष्ट प्रातिहार्य में एक प्रातिहार्य भामण्डल है। भा का अर्थ होता है कान्ति, तेज; और उसका मण्डल यानि गोलाकार वृत्त। भगवान के शरीर में अपूर्व तेज होता है, केवलज्ञान के बाद वो तेज और अधिक विकसित हो जाता है। उस तेज का प्रभाव ऐसा होता है कि एक अंग होने के बाद भी, एक शरीर होने के बाद भी, चार रूप दिखते हैं इसलिए समवसरण में भगवान चारों दिशा में विराजमान होते है। तो भगवान का जो तेज है वो उनके ज्ञान के प्रभाव से और अधिक बढ़ जाता है।
साइंस में इसका काफी विस्तार से विवेचन हुआ है कि हर मनुष्य के शरीर से एक अलग प्रकार की आभा निकलती है जिसको आभामण्डल कहते हैं। जो व्यक्ति जितना पावरफुल होता है, स्ट्रॉन्ग होता है, उसके चारों तरफ से निकलने वाला आभा मण्डल (जिसको aura भी बोलते हैं) वो बहुत strong (मजबूत) होता है; और जिसकी मानसिक स्थिति अच्छी नहीं होती, जिसका पावर बहुत कमजोर होता है,उ सका आभामंडल मंद होता है, ये एक-दूसरे को प्रभावित भी करता है। तो भगवान का ये भामण्डल एक प्रतिहार्य है जो उनके अष्ट प्रातिहार्य में एक प्रातिहार्य कहलाता है उनकी महिमा का बोधक एक बड़ा चिह्न है। उस भामण्डल का इतना अतिशय है कि उसमें व्यक्ति देखे तो तीन भव भविष्य के, तीन भव अतीत के और एक वर्तमान सात भव का दर्शन कर सकता है।
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