शंका
हम अपने विचारों को और भावों को राग व द्वेष रहित करने के लिए क्या प्रयास करना चाहिए? क्यों हम बहुत जल्दी अपनी श्रद्धा से डिग जाते हैं?
समाधान
राग-द्वेष के संस्कार जन्मों जन्मान्तरों के भरे पड़े हैं। राग-द्वेष बिना चाहे होते हैं और राग-द्वेष के शमन के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है। इसका उपाय क्या है? इसका उपाय है भावना। जब आप शान्त हों, सहज हों, तब बार-बार भावनाएँ भाओ, वैराग्य भावना भाओ। वस्तु स्वरूप का विचार करो। आत्मा के स्वरूप का चिंतन करो। इन भावनाओं के उभार से आपके subconscious mind में इस तरह की फीडिंग भर जायेगी कि ‘मुझे राग-द्वेष नहीं करना, मुझे अपने चित्त को विकार ग्रस्त नहीं होने देना।’ तो आप अपने भीतर ऐसा क्षमता विकसित करने में समर्थ हो जाओगे जिससे आपका राग-द्वेष शमित हो, शान्त हो।
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