शंका
सिद्धालय में विराजमान सभी सिद्ध आत्माएँ अनन्त-अनन्त सुख का अनुभव करती हैं। मैंने कई बार कोशिश कि उस सुख की कल्पना करने की पर बहुत मुश्किल है।
समाधान
ये तो ऐसा है कि किसी गूंगे से गुड़ का स्वाद पूछा जाए। वो अनिर्वचनीय है। उसको शब्दों में कहा ही नहीं जा सकता। केवल अनुभव किया जा सकता है। इसका एक अनुमान केवल इस आधार पर कर सकते हैं, कि जब हमारे मन में किसी प्रकार की आकांक्षा नहीं होती, तब मन में जो तसल्ली होती है, वो कैसी होती है? बस उसी का सर्वोच्च रूप सिद्धों को होता है जो आकुलता मुक्त होते हैं।
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