क्या मंदिर के दान के पैसों से कोई भोज आदि का कार्यक्रम करवा सकते हैं? जैसे महावीर जयंती आदि पर सामूहिक भोज आदि।
ये प्रश्न प्रायः आता है और इस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए। मन्दिर में जो भी द्रव्य आपने अर्पित किया है, वो देव-शास्त्र-गुरु के निमित्त या जन कल्याण के निमित्त होना चाहिए। वो निर्माल्य द्रव्य है और निर्माल्य का उपभोग अपने कार्य के लिए करना कतई उचित नहीं है। इसलिए ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए। कभी-कभी प्रश्न आता है कि, हम लोग मुनियों के विहार आदि के निमित्त से जाते हैं, तो उस समय हम लोग अपने लिए खर्चा करते हैं या बड़े भोज, पंगत आदि देते हैं, उसमें खर्चा करते हैं, तो ये उचित है या नहीं?
ये खर्चा मन्दिर के फंड से करना दोषप्रद है, महान पाप का कारण है। कभी मत करना। तो क्या करें? आप लोग चाहें तो मन्दिर में एक गुल्लक रखें, उस गुल्लक में आप धर्म प्रभावना लिख दें। धर्म प्रभावना जिस गुल्लक में लिखा हुआ है, वो धर्म प्रभावना के निमित्त ही डाला गया है, तो उस पैसों का प्रयोग धर्म प्रभावना से जुड़े कोई भी कार्य में कर सकते हैं। कोई दोष नहीं है। लेकिन मन्दिर के रख-रखाव के निमित्त, मन्दिर के निमित्त दान में जो द्रव्य आपने लगाया है उस द्रव्य का उपयोग अपने लिए करते हैं, तो ये पापास्रव का कारण बनता है। ऐसा नहीं करना चाहिए।
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