आपने बताया था कि सबसे बड़ा क्षमा धर्म है। हमने तो सामने वाले को क्षमा कर दिया, पर क्या उसके कर्मों का फल उसको नहीं मिलेगा?
बहुत अच्छा प्रश्न है। क्षमा करने वाला ये देखकर के क्षमा नहीं करता कि अगले को उसके पाप का फल मिलेगा या नहीं? यदि तुम्हारे मन में ऐसा भाव है कि “मैं तो क्षमा करता हूँ लेकिन उसे पाप का फल मिलना चाहिए”, तो इसका मतलब तुम्हारे भीतर प्रतिशोध की भावना अभी जीवित है, आग लगी हुई है; क्षमा कहाँ हुई?
यदि आपके मन में ये भाव है कि उसको उसके पाप का कुछ तो दण्ड मिले तो आपके हृदय में क्षमा का अवतरण हुआ ही नहीं है। आपने परिस्थिति के साथ सामंजस्य बैठाने का कार्य किया है, मन में क्षमा का अभी भाव नहीं हुआ। यदि मेरे मन में क्षमा हो और मैं ये सोचूँ कि “ठीक है उसने मेरा अहित करने का प्रयास किया, वो तो केवल निमित्त मात्र था, अन्तरंग में मेरा उपादान ही कारण था। मैं उसको भूल गया था। मेरा जो होना था सो हो गया, हे भगवान! उसको भी सद्बुद्धि आए और उसका भी कल्याण हो”; क्षमा की भूमिका ये है। ये सोचकर कि “ठीक है, हम उनको क्षमा करते हैं। हम उनसे क्या बदला लेंगे, उसे तो उसका भोग भोगना ही पड़ेगा, नरक में जाके सड़ेगा।” यह क्षमा नहीं है बदला लेने का और गाढ़ा भाव है। एक आदमी इस जन्म में बदला लेता है, आप भवांतर में बदला लेने की बात सोच रहे हो क्या? “हम नहीं कर पाये तो नरक में जाकर सड़े।”
पहली बात तो ये है कि क्षमा करो और भूल जाओ, क्षमा करने का मतलब है माफ करना। इतना ही नहीं केवल माफ करने का नाम सच्ची क्षमा नहीं है माफ करने के बाद पूरे प्रकरण को साफ करने का असली नाम क्षमा है। इसलिए “हमने माफ किया और साफ किया, chapter close (पाठ समाप्त)”,तो ये सवाल ही नहीं उठता।
अब रहा सवाल कि उसको उसका फल मिलेगा कि नहीं? आपने किसी के द्वारा किये दुर्व्यवहार को सहकर अपने अहित और अपने प्रति हुए अनुचित व्यवहार के बावजूद उसको क्षमा कर दिया तो आपने तो अपने कर्मों की निर्जरा कर दी। ये सोचकर कि “सामने वाला निश्चिन्त हो जाए कि हमने उसे क्षमा कर दिया, हमारे सारे दोष मिट गये।” नहीं!, अभी माफ हुआ है साफ तो तुमको करना है। जो कलंक अपने भीतर लगाया है दोष करने वाले को उसका प्रायश्चित करना चाहिए। क्षमा किया और आपने यदि क्षमा माँग लिया है, तो क्षमा माँग लेने से भी बहुत सारे दोषों का निराकरण हो जाता है। पर इसे सुनकर ऐसा मत करना जैसा एक बार हुआ था। एक गुरु ने एक शिष्य को बताया कि कोई भी दोष हो क्षमा माँग लो तो सारे दोष का निवारण हो जाता है, प्रतिक्रमण हो जाता है। नया नया साधु था, बच्चा था, उम्र कम थी, अनुभव कम था, बचपना था। एक दिन सामायिक के लिए बैठा था, सामने कुम्हार का घर था। कुम्हार आवा से घड़े निकाल-निकाल के धूप में रख रहा था। इसको गुरु की बात याद आ गयी कि “कितना भी बड़ा दोष हो क्षमा माँगने से दोष दूर हो जाता है, प्रतिक्रमण हो जाता है।” तो बच्चा तो था ही एक पत्थर उठाया और घड़े में दे मारा और कहा कि “मिच्छामि दुक्कडम्”। कुम्हार ने देखा कि घड़ा फूटा, साधु महाराज हैं… होगा कुछ, नजर अंदाज किया। कुछ देर बाद दूसरा पत्थर उठाया फिर दूसरे घड़े को फोड़ दिया, कुम्हार को लगा “ये क्या है?” कुछ बुदबुदाता है और घड़ा फोड़ रहा है। फिर भी अब तक साधे रहा। जब तीसरी बार ऐसा हुआ तो पत्थर उठाकर थोड़ा नजदीक पहुँचा बोला “महाराज! क्या कर रहे हो मेरे तीन-तीन घड़े फोड़ दिये?” बोला कि “मेरे गुरु ने कहा है कि अगर कोई दोष हो जाए और क्षमा माँग लो तो साफ हो जाता है। तुम देखते नहीं हो मैं इधर फोड़ता हूँ और कहता हूँ कि “तस्य मिच्छामि दुक्कडम्।” कोई पाप नहीं लगेगा।” कुम्हार को भी ताव आया, उसके हाथ में एक लाठी थी। उसने वो लाठी उठाकर सिर पर दे मारी और कहा कि “तस्य मिच्छामि दुक्कडम्।” उसका सिर फूट गया।
समझ गये! ऐसा मत करना कि ‘गलती हो जाए तो क्षमा माँग लेने से मेरा दोष दूर होगा।’ क्षमा माँगने से मन हल्का होता है और क्षमा करने वाला का मन हल्का होता है। लेकिन पाप का तो प्रायश्चित करना ही चाहिए और उसकी पुनरावृत्ति न करने का संकल्प लेना चाहिए। तब जीवन धन्य होगा। क्षमा माँगने वाले से क्षमा करने वाला बड़ा होता है इस बात को कभी भूलना मत।
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