अन्न दान सर्वश्रेष्ठ क्यों है?
अन्न दान को श्रेष्ठ दान क्यों कहा? कार्तिकेयानुपेक्षा में कहा कि आप साधु को आदर पूर्वक दान देते हैं, भोजन दान देते हैं तो उसे रत्नत्रय का दान देते हैं। क्योंकि एक साधु अपनी साधना करता है, तो रत्नत्रय के बल पर ही करता है। रत्नत्रय कब फलता है? जब उनको अपने शरीर के लिए साधन भूत आहार, पानी उचित मात्रा में मिलता है। ऐसा कहते हैं कि,
“अन्नम बलम् बलम् उत्पन्नम्, बलम् मूलं हि जीवनम्”
हमारे शरीर में जो बल उत्पन्न होता है अन्न के द्वारा होता है, और अन्न से ही बल की प्राप्ति होती है, अन्न से बल मिलता है। बिना बल के कोई साधना नहीं कर सकता है, इसलिए आहार दान को विशेष माना जाता है।
हमारे यहाँ चार प्रकार के दान हैं आहार दान, औषधि दान, उपकरण दान, और आवास दान। अब हमारा शरीर टिका है। शरीर के अनुकूल हमें आहार की प्राप्ति हो गयी, तो हमें औषधि की जरूरत नहीं है क्योंकि आहार ही औषधि है। दूसरे नम्बर पर हमारे लिए आहार दान दिया तो औषधि दान हो गया, ये जो शरीर है, ये मोक्ष मार्ग का एक उपकरण है। शरीर के साधन से ही हम अपने जीवन को आगे बढ़ा सकते हैं। हमारे शरीर का टिकाऊपन होगा, तो हम स्वाध्याय आदि कर सकते हैं। आप शास्त्र रख दो और भोजन न दो तो काम कैसे चलेगा? तो इससे उपकरण दान भी हो गया और खूब अच्छा आवास मिल गया पर भोजन नहीं है, तो बीमार पड़ जाएँगे। कोई साधना नहीं कर पायेंगे। इसलिए भोजन की सबसे ज़्यादा आवश्यकता है। चार दानों में यद्यपि सभी दान श्रेष्ठ हैं, लेकिन आहार दान को उसमें विशेष रूप से महत्त्व दिया गया।
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