भारत देश में युवाओं की शक्ति अधिक है। पर युवा इधर-उधर भटक रहे हैं। लोकतंत्र में खुद को सुरक्षित महसूस करते हुए हमारी संस्कृति, हमारी परम्परा, सबको ध्यान में रखते हुए हम सबकी क्या भूमिका हो सकती है, जिससे इस भारत देश का नाम गौरवान्वित हो, यह स्वाभिमान से खड़ा रहे?
वस्तुतः मैं तो ये कहूँगा कि हर व्यक्ति के हृदय में राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न होनी चाहिए।
राष्ट्रवाद से मतलब मेरा उस राष्ट्रवाद से नहीं, है जिसके लिए लोग कई प्रकार के आक्षेप और आरोप लगाते रहते हैं। राष्ट्रवाद से मतलब वह राष्ट्रवाद जिसके निमित्त हर व्यक्ति के हृदय में वह राष्ट्रीय चेतना जागृत हो, जो राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए समर्पित हो। हर व्यक्ति के अन्दर राष्ट्रीय चेतना जगे, हर व्यक्ति का राष्ट्रीय चरित्र बने। वो जो कुछ भी करें ये सोच करके करें कि मुझे सबसे पहली भूमिका राष्ट्र के निर्माण के लिए देना है। व्यक्ति बाद में, राष्ट्र पहले। यदि ये बात लोगों के मन में आ जाए तो मैं समझता हूँ हम अपने देश को फिर से पुराने भारत की तरह स्थापित करने में कोई देर नहीं लगेगी। हम आसानी से कर सकते हैं।
विडम्बना ये है कि लोग अपने निहित स्वार्थों के पीछे इन सब बातों को गौण कर देते हैं। जिसके कारण आज देश का धीरे-धीरे पतन हो रहा है। इसके पीछे एक बड़ा कारण ये भी है कि हमारे समाज के एक बड़े वर्ग की उदासीनता बढ़ती जा रही है। वो तटस्थता की वृत्ति अपनाता जा रहा है। इसके लिए हमारी राजनीतिक परिस्थितियाँ भी एक कारण बन रही हैं, अन्य कारण भी हैं जिनके कारण ऐसी धारणा आम होती जा रही है। इस तटस्थता की वृत्ति को हमें खत्म करना होगा और पूरे राष्ट्र के निर्माण के लिए हर व्यक्ति को एक साथ जुटना होगा।
आपने अभी लोकतंत्र के पर्व की चर्चा की, मैं तो कहता हूँ मतदान करना हर नागरिक का कर्तव्य है और बड़ी जागरूकता के साथ उसे मतदान करना चाहिए; और उसी को अपना मत देना चाहिए जो भारत को भारत बनाने के लिए प्रतिबद्ध हो, जो भारत और भारतीयता के विकास की बात करता हो। भारत में रह करके जो पश्चिम की वकालत करते हैं, मैं समझता हूँ वो भारत के संरक्षक नहीं बन सकते। हमें भारत और भारतीयता को पूरी तरह बचा कर चलने की कोशिश करनी चाहिए।
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