जैन धर्म के अनुसार कोई भी शुभ कार्य संपन्न करने के लिए मुहूर्त निकालने की आवश्यकता है क्या?
मुहूर्त के विषय में हमारे जैन शास्त्रों में भी मान्यता दी गई है, जहाँ तक सम्भव हो शुभ कार्य को शुभ मुहूर्त में करो क्योंकि द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का प्रभाव पड़ता है, इसे नकारें नहीं। लेकिन ज्योतिष बहुत flexible है, उसमें बहुत गुंजाइश है। मैंने मुहूर्त चिंतामणि पढ़ा, पूरा मुहूर्त शास्त्र पढ़ा; उसमें एक जगह आया कि एक पंचकल्याणक का मुहूर्त शोधना है, तो १०८ चीजें शोधो और १०८ बातें १०- ५ बरस में ही पूरी की पूरी पॉजिटिव होती हैं, वह भी एक आध मुहूर्त ही ऐसा होता है। ऐसे तो हम लोग प्रतिष्ठा भी नहीं कर पाएँगे, क्या करें? तो कहा गया – इसमें जितना अधिक हो सके उतना शोध लो। और ज्यादा नहीं हो तो फिर जो नकारात्मक योग हो उसे हटा दो। अगर वह भी मुमकिन नहीं है और काम जरूरी है, तो उन्होंने लिखा कि ‘जो मूल बली हो वह लेलो। अगर वह भी नहीं है, तो अच्छा लग्न निकाल कर के काम कर लो, लग्न बली हो, तो सब काम हो जाएगा। ‘अब लग्न बली नहीं है और काम करना जरूरी हो तो क्या करें?’ तो ‘मनोबल से काम करो।’ हमने ग्रन्थ वही बंद कर दिया और सोचा यही हम पहले पढ़ लेते, तो इतना पढ़ने की जरूरत ही नहीं होती।
फिर भी हम आप सब क्षीण पुण्य जीव हैं इसलिए यथासंभव मुहूर्त देखकर करो और लकीर के फकीर मत बनो। ध्यान रखना कितना भी मुहूर्त शोधो, भीतर की परिणति यदि खराब होगी तो होनी ही है। पारसनाथ भगवान की दीक्षा का मुहूर्त जबरदस्त था और ७ दिन का उपसर्ग उनको भी सहना पड़ा और रामचंद्र जी का मुहूर्त शोधा था मुनि वशिष्ठ ने, “मुनि वशिष्ठ समय ज्ञानी पंडित धर धर लगन धरे, करम गति टारे नाहिं टरे।” मुनि वशिष्ठ ने पहले ही मुहूर्त शोध लिया लेकिन विवाह हुआ और उनको वनवास जाना पड़ा। तो यह सब चीजें भी अपनी जगह है यथासंभव मुहूर्त देखो लेकिन जो कदम-कदम पर मुहूर्त ही शोधते रहते हैं, उनके जीवन में कुछ भी नहीं हो पाता।
Leave a Reply