हमारे बिजनेस को जब कोई हानि पहुँचाता है और इस कदर तक हानि पहुँचाता है कि हमारे सब्र का बांध छलकने लगता है, तो हमारे मन में कई प्रकार की दुविधाऐं पैदा हो जाती हैं। हम उसका क्या करें? सब्र को कब तक रखें?
व्यापार है, आज के समय में व्यापार में एक प्रकार की प्रतिस्पर्धा है। प्रतिस्पर्धा तो ठीक है अब कई जगह प्रतिद्वंदिता का रूप ले लेती है और ऐसे में ऐसा लगता है कि कोई मेरा नुकसान कर रहा है।
सबसे पहली बात तो मैं आपको कहूँ- जीवन में कभी ऐसा मत सोचो कि कोई मेरा नुकसान करने वाला है। तुम्हारा नुकसान करने वाला बाहरी कोई नहीं, तुम्हारा नुकसान करने वाला, क्षति पहुँचाने वाला अगर कोई शत्रु है, तो वह तुम्हारे भीतर का है, वह तुम्हारा कर्म है, तुम्हारा पाप कर्म है। तुम्हारे पाप कर्म का उदय होगा तो अनचाहे भी जिसे तुम अपना मित्र मान के चलते हो, हितैषी मानकर के चलते हो उससे भी तुम्हें नुकसान हो जाएगा और अपने पुण्य कर्म का उदय होगा तो बड़े से बड़ा शत्रु भी तुम्हारा बाल बांक़ा नहीं कर सकेगा। पहले तत्त्व के प्रति श्रद्धान बनाओ और किसी भी स्थिति में किसी भी व्यक्ति के प्रति घृणा, नफरत, वैमनस्य और प्रतिशोध की भावना मन में मत लाओ। यह एक प्रकार की हिंसा है, पाप है, अधर्म है, इससे तुम्हारा पतन होगा। यदि मेरे मन में किसी के प्रति प्रतिशोध की भावना हो रही, मैंने अपने अन्तस में आग लगा ली, अपना नुकसान तो मैंने कर ही लिया और उस पाप भाव के कारण आपका बन्ध तो होगा ही होगा, नए पाप की उदीरणा भी हो सकती; जिसको आज नहीं आना वह भी सामने आ सकता है, तो हमारे मन को विचलित करेगा। इसलिए ये मत सोचो कि वो मुझे नुकसान पहुँचा रहा है; मेरा जितना है वह मुझे मिलेगा। मेरी कोशिश केवल यह होनी चाहिए कि मैं सब के प्रति सद्भावना रखूँ। मैं अपने आप को आगे बढ़ाने के लिए उद्यम करूँ पर कभी किसी का बुरा न सोचूँ। और बुरा हो जाए अपना, तो सहज भाव से स्वीकार करूँ क्योंकि कर्म किसी को कहीं नहीं छोड़ता। इसलिए मन में मत लाओ।
मेरे सम्पर्क में एक युवक है, उसने अपना व्यापार किया। व्यापार करने के बाद बहुत तेजी से ग्रोथ हुई। पर जैसा होता है कि कई लोगों को दूसरे लोगों की प्रगति सुहाती नहीं। तो कुछ लोग थे उन्होंने उसे नुकसान पहुँचाना शुरू किया। जब नुकसान पहुँचाने की बात आई तो उनके भतीजों से सहा नहीं गया। उन्होंने सोचा ‘टिट फॉर टैट’ करना चाहिए, हमें भी उनके साथ ऐसा सलूक करना चाहिए। जब भतीजों की बात चाचा के पास आई तो चाचा ने जो बात कही बहुत ध्यान देने योग्य है, उन्होंने कहा- “नहीं, हमको ऐसा नहीं करना। वह हमारा क्या नुकसान करेंगे? सामने वाले से उलझने में अपनी शक्ति लगाने की जगह अपने बिजनेस को ग्रोथ देने में अपनी शक्ति लगाएँ, उधर क्यों लगाएँ? हमने तो गुरुओं से एक ही बात सुनी है कि – जब तक तेरा पुण्य उदय है कोई तेरा नुकसान नहीं कर सकता और जब पापोदय आएगा कोई तुमको सम्भाल नहीं सकता।-इस पर पक्के श्रद्धानी बनो। वो गलत करेंगे खुद मुँह की खायेंगे। हमें उनसे प्रभावित नहीं होना है और अपने जीवन की दिशा को आगे बढ़ा के चलना है” और इसका परिणाम ये हुआ कि तीन साल में उसने अपने बिजनेस को डेढ़ सौ पर्सेंट की ग्रोथ दे दी। तो ये मत सोचो कि वह मुझे नुकसान कर रहा है, तुम देखो मेरी बैलेंस शीट कैसी है? वह ठीक है न, तो कोई नुकसान करने वाला नहीं है और वो खराब हो रही है, तो वो ही एक निमित्त नहीं है और भी दूसरे निमित्त है, तो व्यापार में अपनी कुशलता को बढाओ और अपने पुण्य को गाढ़ा बनाने के लिए सत्-अनुष्ठान करो।
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