सुख कितने प्रकार का हो सकता है?

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शंका

इंसान को खुशी बहुत सारे sources (स्रोतों) से मिल सकती है, जैसे luxury और entertainment। एक और स्रोत (source) हो सकता है- दूसरों की मदद करना या फिर पशु आदि की मदद करना। पहले source को तो बहुत लोग जुटा (afford) लेते हैं पर दूसरे को नहीं। ऐसा क्यों?

समाधान

हमारी खुशी दो हैं- एक भीतरी और एक बाहरी। एक वो जो लोग luxurious या सारे एंटरटेनमेंट के resources के माध्यम से पाते हैं; और एक वो खुशी जब हम कुछ अच्छा कर्म करते हैं तो हमें मिलती है। दोनों में बहुत अन्तर है। 

ये बड़ी सच्चाई है कि जब हम बाहरी संसाधनों से कोई खुशी पाते हैं तो बहुत थोड़ी देर के लिए होती है। लेकिन जब हमारे अन्तर्मन में कोई खुशी प्रकट होती है, तो वह चिरस्थाई होती है। मैं आपको कहूँगा कि हमारे अन्दर दो तरह की खुशी है या सुख है- एक अभिप्राय का सुख और दूसरा अनुभूति का सुख। अभिप्राय का सुख वो सुख जिसमें हम अपने आप को सुखी मानते हैं, ब्रांडेड कपड़े पहन लिए, अच्छे गेजेट्स रख लिए। ब्रांडेड जूते पहने हैं, ब्रांडेड चश्मा लगाए हुए हैं और एक अच्छे महफिल में घूम रहे हैं, अपने आप को बड़ा सुखी महसूस कर रहे हैं। करने वाले करते हैं, सुखी हैं, मानते हैं अपने आपको सुखी। एक आदमी है जिसके पास यह नहीं है पर अपने आप में मस्त है। मैं आपसे कहूँगा दोनों के अन्तर को समझो। एक आदमी ब्रांडेड जूता पहना है, एक आदमी नंगे पांव चल रहा है। जो ब्रांडेड जूता पहना उसका जूता उसके पांव को काट रहा है और जो नंगे पांव चल रहा है वो निश्चिंत होकर चल रहा है। बोलो कौन सच्चा सुखी है? यह बताओ तुम नंगे पैर चलना पसन्द करोगे कि काटने वाला जूता पहन कर चलना पसन्द करोगे? दुनिया उसी जूते को पहनना पसन्द करती है जो काटता है। जितना भी भोग-उपभोग के साधनों से मनुष्य को सुख मिलता है, कितनी देर? उसकी ओट में आकुलता ही बढ़ती है क्योंकि वो मन को बहलाने के साधन हैं। उससे सच्चा सुख प्रकट नहीं हो सकता। सच्चा सुख हमारे भीतर है। 

दूसरी तरफ सुख को भोगने से सुख नहीं मिलता। सुख को बांटने से सुख मिलता है। यदि आप किसी की मदद करते हैं, किसी की पीड़ा का प्रतिकार करते हैं, किसी की सेवा करते हैं, किसी को सहयोग देते हैं तो वहाँ आपने सुख पहुँचाया है। आप अगर किसी को सुख पहुंचायेगे तो आपका सुख कई गुना बढ़ेगा। आप केवल सुख भोगोगे, आपका सुख खत्म हो जाएगा। इसलिए एक निष्कर्ष लीजिए जीवन में मुझे सुख भोगना नहीं, सुख बांटना है। सब को सुख पहुँचाना है मैं अपने आप सुखी हो जाऊँगा।

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