कर्म आत्मा के मूल गुणों को प्रकट नहीं होने देते हैं, उसे विकृत कर देते हैं। तो उनसे बचने का क्या उपाय है?
धर्म को समझो, कर्म अपने आप कट जाएगा। आत्मा को जगाओगे तो कर्म नियंत्रण में आएगा। दरअसल कर्म ने हमारे विचार और विवेक को सबसे ज़्यादा प्रभावित कर रखा है, यह मोह के कारण। जब मनुष्य का विचार शुद्ध होता है, विवेक जागृत होता है उसे समझ में आता है कि मैं कहाँ गलत कर रहा हूँ, वो संभलता है और उसके इसी संभलने की प्रक्रिया से होकर कर्म काट पाता है। इसलिए कर्म को काटने का यही उपाय है कि आत्मा को जगाये, समता के परिणाम का जितना बने अभ्यास करें।
एक बात याद आई, कर्म को छेदने का क्या उपाय? एक सामान्य व्यक्ति के लिए, तुम जैसे युवा के लिए जिसे बहुत ज़्यादा ध्यान साधना करने की अनुकूलता नहीं, जो ज़्यादा समता रखने का अभ्यास नहीं वह अपना कर्म कैसे काटे? अभी पुण्य बाँधने की बात तो की गई थी, अब कर्म काटने की बात मैं आपसे कहना चाहता हूँ। आप लोग अपना कर्म काटना चाहते हैं? देखो, हमारे वीरसेन महाराज कर्म काटने के उपाय क्या कहते हैं –
द्वादशांगावगमः तद्तीव्र भक्ति केवलीसमुद्घात परिणामाश्चेति संसार विच्छेतेः कारणम्।।
द्वादशांग का ज्ञान और तीव्र भक्ति, केवली समुद्घात परिणाम यह संसार के विच्छेदन का कारण है। द्वादशांग आज है नहीं, इसलिए ज्ञान तुम्हें हो नहीं सकता, और केवलज्ञान हो जाए तो यह सवाल ही अप्रासंगिक हो गया। केवली हम तुम आज हैं नहीं, तो हमारे पास संसार का विच्छेद करने का क्या साधन है? तीव्र भक्ति! भक्ति क्या है? भगवान के पास जाकर रटे-रटाये शब्दों में स्तुति पढ़ लेना, नृत्य-गान कर लेना? नहीं! भक्ति का मतलब है भाव विशुद्धि युक्त अनुराग। बस देव से, गुरु से, शास्त्र से जुड़ो, भाव विशुद्धि युक्त अनुराग रखो, तुम्हारे कर्म कटेंगे और जीवन सुधरेगा।
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